बीमारियों से जंग हारता भारत

अर्थशास्त्र के छात्रों को पढ़ाया जाता है कि भारत एक समृद्ध देश है किन्तु भारत के लोग गरीब हैं। यही बात स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में भी कही जा सकती है। जग जाहिर है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने के लिए अमेरिका और यूरोप सहित कई देशों के लोग आते हैं लेकिन भारतवासियों को यहाँ उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पोलियो, मलेरिया और क्षयरोग से ग्रसित है। दुनिया के कई प्रगतिशील देशों ने भी इन बीमारियों पर लगभग काबू पा लिया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर के पोलियो के 42 फीसदी, क्षयरोग के 23 फीसदी, कुष्ठरोग के 54 प्रतिशत, काली खांसी के 86 फीसदी और मलेरिया के 55 प्रतिशत पीड़ित भारत में बसते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में कुपोषित शिशुओं की तादाद पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है।
यह स्थिति तब है जबकि देश में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उच्च स्तरीय चिकित्सालय होने के अतिरिक्त सरकार द्वारा संचालित कई स्वास्थ्य सेवाए हैं। लेकिन ध्यान देने की बात तो यह है कि स्वास्थ्य का मसला केवल बीमारिेयों और उनके उपचार तक सीमित नहीं है बल्कि पीने के लिए स्वच्छ पानी, आवश्यक पोषक भोजन और रहन-सहन से जुड़ा हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हाल के वर्षों में औसत आयु मे वृद्धि और मृत्यु दर में कमी बीमारियों पर काबू पाने के नतीजे में नहीं बल्कि पीने के साफ पानी और भोजन की उपलब्धता से संभव हुई है। लेकिन यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े इस संबंध में भी बहुत अच्छी तस्वीर नहीं पेश करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के सिर्फ 21 प्रतिशत जनसंख्या को ‘उन्नत’ स्वच्छता सेवाएं उपलब्ध हैं जबकि 69 फीसदी लोग शौच के लिए खुली जगह में जाते हैं। हालांकि पीने के साफ पानी मुहैया करवा पाने के मामले में हालात पहले से बहुत बेहतर हुए हैं। भारत ने इस क्षेत्र में सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, ग्रामीण जल आपूर्ति योजना और पूर्ण स्वच्छता अभियान जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि इन तमाम योजनाओं के बावजूद भारत के लोगों के स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि भारत में संसाधनों का अभाव है या फिर योजनाओं की कमी है बल्कि स्वास्थ्य के संबंध में भी वही अर्थशास्त्र की बात लागू होती है कि उचित वितरण प्रणाली के अभाव में देश की बहुसंख्य आबादी को स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए विकास का लाभ नहीं मिलता। यह स्थिति वितरण प्रणाली में सुधार के बिना सुधर पाएगी, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता।

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