Organic Farming: इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर आईएएस बनने का सपना देख रहे थे आज जैविक खेती से कमा रहे हैं लाखों रुपए

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान सर्वोपरि है। कृषि विकास के बिना हम ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान की कल्पना भी नहीं कर सकते। यही वजह है कि आज भारत में कृषि-नवाचार (Innovation in Agriculture) की चर्चा जोरों पर है, जिनमें जैविक कृषि (Organic Farming) प्रमुख है।

जैविक कृषि hiएक इंसान के जीवन को किस तरह बदल सकती है इसका एक उदाहरण है कौसानी (जिला बागेश्वर, उत्तराखंड) के कार्तिक भट्ट की एक पहल। कार्तिक भट्ट इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद, आईएएस बनने का सपना देख रहे थे। लेकिन नियति ने उन्हें किसान बना दिया। वह भी पहाड़ का किसान! जहां कि खेती से मान-सम्मान और प्रतिष्ठा तो दूर, आजीविका चला पाना भी मुश्किल समझा जाता है।

पिता नहीं चाहते थे कि कार्तिक खेती करे

कार्तिक भट्ट कहते हैं, ‘‘2016 में इंजीनिरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मैं दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, तो गांव आने पर आसपास के लोग पहाड़ी वस्तुएं - अनाज, दालें, सब्जियां, फल आदि लाने के लिए सूची थमा देते थे। मुझे लगा कि पहाड़ के किसानों के लिए शहरों में भी स्कोप है। जरूरत उनके उत्पादों को शहरों तक पहुंचाने की है।’’

इसी से प्रेरित होकर कार्तिक ने गांव में खेती करने का निर्णय लिया। कार्तिक के पिता भुवन भट्ट, जो पूर्व में कानपुर (उ.प्र.) में एक टेक्सटाइल कंपनी में काम करते थे, 2003 में कंपनी बंद होने पर गांव लौट आए थे, नहीं चाहते थे कि कार्तिक खेती करे। कार्तिक ने जब पहाड़ की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप बहुआयामी जैविक खेती और उसके फायदे गिनाए तो वे सहमत हो गए। इस तरह दोनों पिता-पुत्र एक अभियान के तौर पर अपनी 2 हेक्टेयर जमीन में जैविक कृषि पर जुट गए।

आरंभ में कार्तिक भट्ट ने अपने उत्पादों का सोशल मीडिया से प्रचार किया। उन्हें देश के विभिन्न क्षेत्रों से ऑर्डर मिलने लगे तो उन्होंने ‘‘पहाड़वाला’’ नाम से अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग शुरू कर दी।

हर महीने होती है डेड़ से दो लाख की आमदनी

आज कार्तिक भट्ट 20 से अधिक खाद्य उपजों सहित नाशपाती, खुबानी, आड़ू, संतरा, नीबू, अखरोट आदि फल, कई बेमौसमी सब्जियां और लेमनग्रास, तुलसी, तिमूर, रोजमेरी आदि जड़ी बूटिंयां पैदा कर रहे हैं। साथ ही बड़ी मात्रा में शहद का उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने अपने खेतों में 250 से अधिक बी बॉक्स रखे हैं।

कार्तिक भट्ट से प्रेरित होकर कौसानी और उसके आसपास के कई गांवों के किसान भी जैविक खेती करने लगे हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। कार्तिक भट्ट स्वयं भी किसानों को जैविक खेती अपनाने में मदद करते हैं। कार्तिक भट्ट स्वयं किसानों की उपज भी भी खरीद लेते हैं और उसकी मार्केटिंग करते है। उन्होंने कौसानी और हल्द्वानी में पैकेजिंग सेंटर बनाए है। इससे कार्तिक भट्ट की हर महीने डेड़ से दो लाख रुपए की आमदनी हो जाती है।

जैविक खेती क्या है? (What is Organic Farming)

सवाल यह उठता है कि जैवक खेती क्या है? जैविक खेती का तात्पर्य ऐसी कृषि प्रणाली से है जिसमें रासायिनिक खादों और दवाओं का उपयोग नहीं किया जाता है। पूरी तरह प्राकृतिक तरीकों पर आधारित यह कृषि प्रणाली पर्यावरण-अनुकूल होती है। जैविक उत्पाद स्वास्थ्य के लिए उत्तम और स्वादिष्ट भी होते हैं। इसी कारण बाजार में इनकी अच्छी कीमत मिल जाती है।

हाल के वर्षों में पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण दुनिया में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है। एक अध्ययन के अनुसार 2027 तक विश्व खाद्यान्न बाजार में जैविक उत्पादों का योगदान 25 प्रतिशत हो जाएगा। भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है।

जैविक खेती के पहलू (Basic Aspects of Organic Farming)

1. मिट्टी की तैयारी: जैविक खेती के लिए सबसे पहले मिट्टी की जांच कर उसके पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त की जाती है। इससे यह पता लगता है कि किस जमीन पर कॉन से फसल पैदा करने से अच्छी उपज मिल सकती है।

2. खाद बनाना: मिट्टी में जैविक पदार्थों और पोषक तत्वों की वृद्धि के लिए खाद का उपयोग किया जाता है। कार्बनिक अथवा जैविक खाद मुख्य रूप से पशुओं के गोबर, रसोई के कचरे और फसल के अवशेषों से बनाई जाती है।

3. फसल चक्र: किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं में फसल चक्र है। इसके तहत किसी भी जमीन पर बोई जाने वाली फसल हर साल बदल दी जाती है। यह मिट्टी को खराब होने और कीटों के संक्रमण से बचाता है।

4. कीट एवं रोग नियंत्रण: जैविक खेती में कीटनाशकों और फसलों के रोगों से बचाने के लिए कीट नियंत्रण के प्राकृतिक तरीकों अपनाए जाते हैं। इसके लिए लाभकारी कीड़ों को खेतों में छोड़ने और कीट-रोधी फसल पैदा की जाती है।

5. पशुधन एकीकरण: कुछ जैविक खेती प्रणालियों में, मुर्गियां या गाय जैसे पशुधन को फसल उत्पादन में एकीकृत किया जाता है। ये जानवर प्राकृतिक निषेचन के लिए खाद प्रदान करते हैं और कीटों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

6. जल प्रबंधन: जैविक खेती जिम्मेदार जल उपयोग पर जोर देती है। जल संसाधनों के संरक्षण के लिए आमतौर पर ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन प्रणालियों को अपनाया जाता है।

6. कटाई एवं भण्डारण: जैविक खेती में फसलें की कटाई उनके पूरी तरह पक जाने पर की जाती है। पकने से पहले फसल कटने से उसके खराब होने का खतरा बना रहता है। फसल की कटाई के बाद घूप में सुखाकर उसका भंडारण किया जाता है।

7. विपणन अथवा बाजार पहुंच: किसी भी उत्पाद लाभ उत्पादक को तभी मिलता है जब वह उपभोक्ता तक पहुंचे। जैविक उत्पाद के उपभोक्ता वे लोग ही होते हैं जो उसके महत्व को समझते हैं और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं। इसके लिए उत्पाद की आकर्षक पैकेजिंग, लेबलिंग और उपज की प्रमाणिकता जरूरी होती है।

बहरहाल, जैविक कृषि भारतीय किसानों के लिए एक विशेष अवसर है। बड़े किसान ही नहीं छोटे किसान भी इसका लाभ उठा सकते हैं और अत्याधुनिक कृषि सुविधाओं से वंचित पहाड़ी, पठारी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी किसान जैविक खेती से अपनी आर्थिक स्थिति में बदलाव कर सकते हैं।

निश्चित ही कार्तिक भट्ट की कोशिश और कामयाबी एस अनुकरणीय पहल है। इस तरह के प्रयास देश के कई हिस्सों में शिक्षित युवा कर रहे है। दिल्ली के एक बीघा से भी कम जमीन पर लोग जैविक सब्जियां पैदा कर आजीविका चला रहे हैं। उपभोक्ता उनके खेतों में जाकर ही सब्जियां खरीदते हैं और उसकी अच्छी कीमत भी चुकाते हैं।

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