नेत्र चिकित्सा सुविधा से वंचित हैं अस्सी प्रतिशत लोग : डॉ़ मोहिता शरमा

मौलाना आजाद मेडिकल कालेज, दिल्ली से एम.बी.बी.एस. और एम.एस. (ऑफ्थाल्मोलॉजी) की शिक्षा प्राप्त डॉ. मोहिता शर्मा की गिनती नौएडा के अग्रणी नेत्र चिकित्सकों में होती है। 1995 में एम.एस. करने के बाद उन्होंने करीब तीन साल तक गुरु नानक आई सेंटर में नौकरी की और तत्पश्चात 1998 में सेक्टर19 नौएडा में ॔तिरुपति आई सेंटर’ नाम से आँखों का अस्पताल खोला, जो आज नौएडा का एक प्रतिष्ठित नेत्र चिकित्सालय है। अपनी योग्यता का लाभ समाज के कमजोर वर्गों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध डॉ. मोहिता शर्मा पिछले कई वर्षो से नेत्र चिकित्सा की सुविधा से ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क चिकित्सा शिविर लगा रही हैं और प्रतिदिन अपने अस्पताल में एक घंटे चैरिटेबल ओपीडी चलाती हैं। डॉ. शर्मा का कहना है कि दृष्टि के प्रति लोगों में जागरूकता ब़ी है। लेकिन नेत्र चिकित्सकों के महानगरों में केन्द्रित हो जाने से ग्रामीणों क्षेत्रों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। प्रस्तुत है डॉ. मोहिता शर्मा से इन्द्र चन्द रजवार की बातचीत के मुख्य अंश ; 
अक्सर यह कहा जाता है कि इधर कुछ वर्षों से आँखों की बीमारियां ब़ीं हैं, इसमें कितनी सत्यता है? ऐसी कोई बात नहीं है, बल्कि कुछ वर्षों से डिटेक्शन ज्यादा हो रहा है। पहले लोग विजन (दृष्टि) की आवश्यकता कम महसूस करते थे आँखों के प्रति उनमें जागरूकता ब़ी है, इसलिए बराबर चेकअप कराते हैं, इससे आँखों की छोटीबड़ी बीमारियां पकड़ में आ रही हैं और लोग उनका ईलाज कराने लगे हैं। 
आँखों की मुख्य बीमारिया कौनकौन से होती हैं? 
एलर्जी और ड्राइनेस आँखों की सामान्य बीमारियां हैं। एलर्जी प्रदूषण और गंदगी के कारण होती है, इसमें आँखों में खुजली होने लगती है। जबकि ड्राइनेस अधिक टेलीविजन देखने, कंप्यूटर पर अधिक काम करने या ऐसे काम करने से होती है जिसमें आँखों की पलकें नहीं झपकती हैं, इससे आँखों की नमी खत्म हो जाती है। इसके अलावा काला मोतिया, सफेद मोतिया रेटिनोपैथी, जो डाइबिटिीज के कारण होती है, उम्र ब़ने के साथसाथ होने वाली बीमारियां हैं। आमतौर पर 50 वर्ष की उम्र के बाद ये समस्याएं आती हैं। 
कुछ वर्षों से छोटेछोटे बच्चों की भी नजर कमजोर होने के मामले बड़े हैं, इसकी वजह क्या है? 
यह मुख्यतः ड्राइनेस की समस्या है। एक तो बच्चे टेलीविजन अधिक देखते हैं और बहुत ही कम उम्र से कंप्यूटर पर काम करना शुरू कर देते हैं। दूसरा बिटामिन ॔ए’ की कमी से भी यह समस्या ब़ी है। जैसे बच्चों में टीवी का क्रेज ब़ा है वैसे ही फास्टफूड के प्रति भी बच्चों का आकर्षण ब़ा है, इससे बच्चे हरी सब्जियां खाना पसंद नहीं करते जिससे उन्हें आवश्यक बिटामिन ॔ए’ की आपूर्ति नहीं हो पाती। 
इन सभी बीमारियों के उपचार की क्या स्थिति है? 
हमें जितने अस्पताल और डॉक्टर चाहिए उतने हैं या कम हैं? अगर हम पूरे देश की बात करें तो तो स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो आँखों के सामान्य रोगों के लिए भी उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। जिला स्तर के सरकारी अस्पतालों में भी ऑपरेशन की व्यवस्था बहुत कम रहती है। यहाँ तक कि नौएडा में भी, सरकारी अस्पताल में मोतिया बिन्द के ऑपरेशन की सुविधा नहीं है। डॉक्टर कम नहीं हैं लेकिन अधिकतर महानगरों और नगरों में केन्द्रित हैं। शहरी क्षेत्रों में भी एक जैसी स्थिति नहीं है। कुलमिलाकर देखा जाए तो 70 से 80 प्रतिशत तक लोग सुविधा से वंचित हैं। 
इसकी वजह क्या है? 
सरकारी अस्पतालों में आँखों के ईलाज की व्यवस्था बहुत ही कम है। आँखों के अलग से अस्पताल तो और भी कम हैं। यदि कोई डॉक्टर अपना क्लीनिक खोलना चाहे तो उसमें काफी पैसा लगता है। इसलिए आँखों के अधिकतर डॉक्टर शहरों में रहना पसंद करते हैं। महानगरों में सरकारी और प्राइवेट नौकरी के अवसर भी अधिक हैं और निजी क्लीनिक खोलना भी फायदेमंद है। 
नेत्र चिकित्सा में निर्णायक चीज क्या है, स्किल (दक्षता) या टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी)? 
दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। वैसे यह सर्जरी के अन्तर्गत आता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ एम.एस. होता है। इसमें इसमें टेक्नोलॉजी निर्णायक है। 
चिकित्सा क्षेत्र में जाने वाले कितने लोग नेत्र चिकित्सा को प्राथमिकता देते हैं? 
 एम.बी.बी.एस. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की प्राथमिक शिक्षा है। इसमें नेत्र चिकित्सा विज्ञान की पॄाई बहुत कम होती है। नेत्र चिकित्सा के लिए एम.एस. ऑफ्थाल्मोलॉजी करना होता है, एम.बी.बी.एस. करने वाले लोगों में से 23 प्रतिशत ही इस क्षेत्र में आते हैं, जो कि बहुत ही कम है। देश में नेत्र चिकित्सकों की जरूरत को देखते हुए यह औसत कम से कम 10 प्रतिशत होना चाहिए। 
नेत्र चिकित्सा के प्रति लोगों का लगाव कम होने का कारण क्या है? 
पहला कारण तो जॉब लिमिट ही है। सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्रों में नेत्र चिकित्सकों के लिए नौकरियां बहुत कम हैं। दूसरा कारण अपना क्लीनिक खोलकर प्रैक्टिस करना हर किसी नेत्र चिकित्सक के लिए संभव नहीं है। इसमें करीब 2025 लाख रुपए का व्यय आता है। मुख्य काम मशीनों पर आधारित होता है और नईनई मशीनें आने से आगे भी उसमें व्यय की आवश्यकता बनी रहती है। 
इस स्थिति में सुधार के लिए आप सरकार से किस तरह की नीतियों और योजनाओं की अपेक्षा करती हैं? 
सरकार को अस्पतालों में नेत्र चिकित्सकों की संख्या ब़ानी चाहिए और निजी क्लीनिक खोलने के लिए आर्थिक सहयोग करे। 
एक डॉक्टर के रूप में आ अपनी सामाजिक भूमिका को किस रूप में देखती हैं? 
अपनी योग्यता का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक चुंचना मेरा ध्येय रहता है। तिरुपति आई सेंटर की ओर से हम हर साल 810 निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाते हैं, जो अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में लगाए जाते हैं। इन शिविरों में जिन मरीजों का ईलाज नहीं हो पाता उन्हें यहाँ सेंटर में बुला लेते हैं, उनके आनेजाने की व्यवस्था भी करते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन सुबह एक चैरिटेबल ओपीडी चलाते हैं, जिसमें चेकअप कराने के लिए मात्र 25 रुपए शुल्क लेते हैं। इधर हम बेंगलुरू की सामाजिक संस्था ॔विट्ठल इंटरनेशनलन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ्थाल्मोलॉजी’ के साथ एक विशेष प्राजेक्ट शुरू करने वाले हैं। 
गर्मियां शुरू होते ही आँखों की बीमारियां ब़ जाती हैं। इससे बचने के लिए आप क्या सुझाव देंगी? 
जितना संभव हो सके धूप से बचें, आँखों में ठंडे पानी के छींटे मारें, धूप के चश्मे का प्रयोग करें और इसके अलावा लुब्रीकेंट ड्रॉप आँखें में डालकर गर्मियों में आँखों को होने वाली परेशानी से बच सकते

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