ILO ने जारी की World Employment and Social Out Look Trends 2024 रिपोर्ट, कहा - दुनिया में बढ़ सकती है बेरोजगारी


 बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे देशों की लिए यह बुरी खबर है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) के अनुसार इस साल यानी वर्ष 2024 में दुनिया में बेरोजगारी और बढ़ सकती है। इससे जहां लोगों निम्न और निम्न-उध्यम आर्य वर्ग के लोगों के जीवन में गिरावट आ सकती हैं वहीं वैश्विक स्तर पर भू-राजपैतिक तनाव में वृद्धि होने की संभावना है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने 10 जनवरी, 2024 को जारी वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स 2024’ (World Employment and Social Out Look Trends 2024) रिपोर्ट में इस बात का संकेत दिया है कि 2024 में वैश्विक बेरोजगारी दर में वृद्धि हो सकती है। रिपोर्ट में श्रम शक्ति भागीदारी दर में गिरावट और रोजगार के अवसरों में वृद्धि की धीमी गति का अनुमान लगाया गया है। इससे वैश्विक बेरोजगारी दर जो 2023 में 5.1 प्रतिशत रही है वह 2024 में बढ़कर 5.2 प्रतिशत हो सकती है।

संगठन ने कहा है कि वैश्विक बेरोजगारी दर में वृद्धि से श्रम शक्ति भागीदारी, भू-राजनीतिक संबंधों, वैश्विक मूल्य संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में उच्च ब्याज दरें भी व्यावसायिक संस्थानों में छटनी और नौकरियों के अंतर को बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं।

ज्ञात हो कि कोविड-19 के कारण दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। उत्पादन और खपत में कमी का स्वाभाविक असर रोजगार पर पड़ा था। 2023 में कई देशों, विशेष रूप से मध्यम और उच्च आय वाले देशों में श्रम बाजार भागीदारी दर महामारी के निचले स्तर से काफी हद तक उबर गई थी। लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के बीच मतभेद बने रहने से श्रम बाजार में असंतुलन बढ़ा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2023 में औसत कामकाजी घंटे महामारी से पहले के स्तर से नीचे रहे हैं। कई देशों में महामारी के दौरान बंद हुए उपक्रमों में काफी फिर से शुरू नहीं हो पाए, इससे कुल उपलब्ध श्रम इनपुट कम हो गया। इसका असर कई देशों के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) पर पड़ा है।

आईएलओ ने बताया कि 2023 में वैश्विक नौकरी का अंतर कम हुआ, लेकिन लगभग 43.5 करोड़ के उच्च स्तर पर बना रहा। संगठन के मुताबिक उच्च और लगातार बनी हुई मुद्रास्फीति दरों के साथ-साथ बढ़ती आवास लागत के कारण वास्तविक मजदूरी और जीवन स्तर में गिरावट की भरपाई जल्दी होने की संभावना नहीं है।

आईएलओ ने रिपोर्ट में कहा है

आईएलओ द्वारा उक्त रिपोर्ट जारी करने से एक दिन पहले, (9 जनवरी, 2024 को) ही, विश्व बैंक ने चेतावनी दी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष के अंत तक खराब प्रदर्शन देख सकती है - जो 30 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि का सबसे धीमा आधा दशक है। इसमें कहा गया है कि बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव आने वाले समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नए संकट पैदा कर सकते हैं और दुनिया तीन दशकों में सबसे धीमी जीडीपी वृद्धि का अनुभव कर सकती है।  

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में का है कि धीमी उत्पादकता वृद्धि की अवधि के दौरान वास्तविक प्रयोज्य आय और वास्तविक मजदूरी आकस्तिक मूल्य वृद्धि को बढ़ाती है। बीते वर्षों मे मंदी के कारण कुछ ही फर्मों के अपने मुनाफे में वृद्धि हुई है। इससे कर्मचारी अपने वेतन में बढ़ोत्तरी की मांग करने से बचते रहे हैं। इस कारण उन्हें और उनके परिजनों को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी है।

आईएलओ ने कहा कि 2023 में जीडीपी अनुमान से अधिक लचीली साबित हुई। 2023 में मुद्रास्फीति का दबाव कम हुआ लेकिन ऊंचा बना रहा। इससे भी श्रम शक्ति की भागीदारी दर की महामारी से पहले की स्थिति में वापसी असमान रही है। निकट भविष्य में श्रम बाजार का परिदृश्य और भी खराब होने की आशंका है।

संगठन में प्रौद्येगिकी क्षेत्र में आए बदलावों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि आर्टिफिशिएल इंटलिजेंस की शुरूआत और लोकप्रियता बेरोजगारी की समस्या को बढ़ा सकती है, क्योंकि तकनीकी प्रगति में तेजी लाकर श्रम बाजार समायोजन का और परीक्षण किया जाएगा।

भू-राजनीतिक तनाव से और बढ़ सकता है संकट

वर्ष 2023 में भू-राजनीतिक तनाव उन कारकों में से एक था जो रोजगार के अवसरों के लिए चुनौतियां पैदा की हैं, यह स्थिति को और भी जटिल कर सकता है। आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में इजराइल-हमास संघर्ष से उत्पन्न होने वाले आर्थिक, रोजगार और सामाजिक चुनौतियों और उनसे संबंधित प्रभावों, जैसे शरणार्थी संकट के प्रभाव को भी रेखांकित किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में संभावित व्यवधान एक और बड़ा जोखिम है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अत्यधिक परस्पर जुड़ी हुई है और क्षेत्रीय विकास से दूर है। आईएलओ ने संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में उच्च ब्याज दरों की भूमिका को भी सामने लाया, जिसका वैश्विक विकास पर तीव्र प्रभाव पड़ सकता है।

भारत की स्थिति जी-20 देशों में सभी से अच्छी है

रिपोर्ट में विशेष रूप से भारत की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत ने श्रम शक्ति भागीदारी में वर्ष 2021 और 2022 में सराहनीय प्रदर्शन किया है , जो मैक्सिकों को छोड़कर सभी जी-20 देशों से अच्छा है। लेकिन अन्य देशो के समान ही भारत भी, अभी सामाजिक असमानता और श्रम अधिकारों की अुनिश्चितता की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

आईएलओ दुनिया के सभी देशों ने दीर्घकालिक योजनाओं को प्राथमिकता देने और रोजगार सृजन एवं सामाजिक सुरक्षा पर जोर देना चाहिए और तकनीकी बदलाव और जलवायु परिवर्तल की चुनौतियों का सामना करने के लिए श्रम शक्ति के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। संगठन ने स्पष्ट कहा है कि आने वाले समय में बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए रोजगार योजनाओं पर निवेश करना चाहिए ताकि न्यायसंगत और समावेश भविष्य का निर्माण सुनिश्चित हो सके।

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