Quality Education: हिमाचल सरकार ने किया गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रारूप तैयार करने का दावा, केंद्र से मांगेगा 2200 करोड़ रुपए

हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खूसरकार का दावा है कि उसने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दायरा बढ़ाने के विस्तृत प्रारूप तैयार किया है, इसके लिए राज्य सरकार केंद्र से 2200 करोड़ रुपये का बजट मांग करेगी। इसके लिए वर्ष 2024-25 और 2025-26 के लिए बजट प्रस्ताव तैयार किया गया है, जो दिल्ली में फरवरी में होने वाली प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में पेश किया जाएगा।

हालांकि शिक्षा व्यवस्था में सुधार और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विस्तार की बातें नई नहीं हैं। शिक्षा में सुधार को लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समय-समय पर विचार विमर्श होता रहा है। देश में नई शिक्षा नीति (National Education Policy-2020) लागू होने के बाद इसकी बारंबारता बढ़ गई है। इसके बावजूद देश की शिक्षा व्यवस्था में खास सुधार आया हो, ऐसा नहीं लगता।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा क्या है 

मानव सभ्यता के विकास में शिक्षा की निर्णायक भूमिका रही है। शिक्षा के बिना सामाजिक-आर्थिक बदलाव की कल्पना नहीं की जा सकती। शिक्षा की बदौलत ही मनुष्य ब्रह्मांड की विशालता और परमाणुओं में इसके अस्तित्व के रहस्य का पता लगा सका है।

सामान्य भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का तात्पर्य ऐसी शिक्षा व्यवस्था से है जो आधुनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने और मानवीय चेतना के विकास में सक्षम हो। बेल्जियम स्थित एजुकेशन इंटरनेशनल (Education International) ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को परिभाषित करते है - गुणात्मक शिक्षा लिंग, नस्ल, जातीयता, सामाजिक आर्थिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति की परवाह किए बिना प्रत्येक छात्र के सामाजिक, भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास पर केंद्रित होती है।

स्कूली शिक्षा के संदर्भ में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का उद्देश्य छा़त्रों में ऐसी चेतना का विकास करना है जो समृद्ध, सम्मानजनक और स्वस्थ जीवनयापन करने में सहायक हो। इसके लिए पाठ्यक्रम (करिकुलम) में उन विषयों को शामिल करने के साथ-साथ एक ऐसा परिवेश देना होता है, जिससे वह समाज और प्रकृति के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह कर सके।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा से है जो व्यक्ति के लिए भौतिक दृष्टि से फायदेमंद होने के मानवीय स्वतंत्रता और समाज में शांति की स्थापना में भी सहायक हो। हालांकि बीते डेड़-दो सौ सालों में मनुष्य ने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति  की है लेकिन वर्तमान की शिक्षा अभी इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र संघ अपने गठन के समय से विश्वशांति को लेकर संवेदनशील रहा है। इसके लिए शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना अति आवश्यक है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सतत विकास लक्ष्य.2030 (Sustainable Development Goal 2030) के लिए एक प्रमुख मानक माना है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से, संयुक्त राष्ट्र का तात्पर्य समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से है।

गुणवत्तपूर्ण शिक्षा के चार प्रमुख मानक माने गए हैं, 1) समता, 2) स्थायित्व, 3) प्रासंगिकता और 4) संतुलित दृष्टिकोण। शिक्षा को समझने और इसे दुनिया को बदलने का साधन बनाने के लिए यह एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण है। इसके लिए शिक्षा के प्रति स्थापित दृष्टिकोण में बदलने के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों का संरचनागत विकास भी जरूरी है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है ?

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास से शिक्षा का स्वरूप तेजी से बदला है। शिक्षा प्राप्त करने का तरीका ही नहीं उसका लक्ष्य भी बदला है। पा्रप्त करने के बदल गया है बल्कि छात्रों को पढ़ाने के तरीकों का भी विकास हुआ है। दुनिया में जिस जेजी के साथ व्यावसायीकरण का विस्तार हुआ है उससे शिक्षा भी एक व्यवसाय के रूप में सामने आई है। शिक्षा के निजीकरण से यह समस्या और भी बढ़ी है।

इस समस्या का सामना सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देकर या फिर निजी शिक्षण संस्थानों के लिए कठोर मानक बनाकर किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था की समस्याओं की पहचान की है, यदि जिनका अगर समाधान नहीं किया गया तो आने वाले समय में दुनिया की बहुत बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित रह जाएगी। मुख्यतः आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए शिक्षा का उद्देश्य डिग्रियां हासिल करने तक सिमट जाएगा।

कहां खड़ा है भारत ?

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लेकर संयुक्त राष्ट्र का दृष्टिकोण महात्मा गांधी के विचार से अलग नहीं हैं। गांधी जी ने कहा है, “सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है।’’ इस लिहाज से आज किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था को गुणवत्तापूर्ण नहीं कहा जा सकता। हां, कुछ देशों में ऐसी व्यवस्था जरूर है जिसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के करीब कहा जा सकता है। मसलन, जापान, जर्मनी, डेनमार्क, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम? आस्टेªलिया, फिनलैंड आदि।

भारत इस सूची में अभी भी बहुत नीचे है। जहां न केवल समतापूर्ण शिक्षा अभाव है बल्कि सरंचनागत स्थिति भी दयनीय है। प्राइमरी स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में विद्यालय भवन से लेकर खेल के मैदान, पुस्तकालय, यहां तक पीने के पानी और शौच आदि की समुचित व्यवस्था नहीं है। प्राइवेट स्कूल या व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों पर जपता का कोई नियंत्रण नहीं है तो सार्वजनिक संस्थानों में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं।

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकारी स्कूलों की अव्यवस्था के कारण लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल-कॉलेजों में ठीक से पढ़ाई न होने के कारण लोग न केवल अपने बच्चों को शहर भेजते हैं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन का एक प्रमुख कारण वहां समुचित शिक्षा सुविधा का न होना भी है। यही नहीं देश के कई राज्यों में सरकारी स्कूलों में छात्रों की कमी के कारण सरकार को उन्हें बंद करने का आदेश जारी करना पड़ता है।

संभवतः हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सरकार जिस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा कर रही है वह स्कूलों के सरंचनागत सुधार को लेकर हो, ताकि वह राज्य के सरकारी स्कूलों में विद्यालय भवनों का निर्माण कर सके और शिद्वाकों के स्वीकृत पदों पर नियुक्ति कर सके। हां, यदि उसने राज्य में शिक्षा प्रणाली का ऐसा कोई प्रारूप तैयार किया है जो कि णुवत्तापूर्ण शिक्षा के करीब हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

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