Mint Farming: छोटी जोत वाले किसानों के लिए शानदार विकल्प, मार्च में शुरू होती है बुवाई, 90 दिनों में फसल तैयार

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से  लगे बाराबंकी जिले के किसान इन दिनों मेंथा  की खेती (Mint Farming) की तैयारी में जुटे हैं! रबी की फसल पकते ही वे खेतों में मेंथा की बुवाई कर देंगें, जो 90 दिनों में तैयार हो जाएगी। उसके बाद किसान उस खेत में धान की रोपाई कर खरीफ की फसल उगाएंगे। इस तरह वे अपनी जमीन का भरपूर इस्तेमाल तो करेंगे ही, उन्हें इससे अच्छा खासा फायदा भी होगा।

ज्ञात हो कि बाराबंकी देश का सबसे अधिक मेंथा पैदा करने वाला जिला है। इसके अलावा रायबरेली, हरदोई सीतापुर, शाहजहांपुर लखीमपुर, मुरादाबाद आदि कई जिलों में मेंथा की खेती होती है। मुख्य रूप से छोटी जोत वाले किसानों के लिए यह काफी फायदेमंद है। 400 वर्ग मीटर (20 x 20 मीटर) के खेत में भी यानी एक बीघा से भी कम जमीन पर मेंथा की खेती से किसने की अच्छी आमदनी हो जाती है!

 मेंथा क्या है

मेंथा या मिंट एक ठंडी तासीर का औषधीय पौधा है, कई इलाकों में इसे पिपरमिंट भी कहा जाता है । इसका उपयोग मुख्य रूप से कई तरह की औषधियों, और खाद्य सामग्रियों में किया जाता है प्राकृतिक तौर पर मेंथा नदियों के या तालाबों के किनारे पैदा होता है। 

मेंथा पैदा करने के लिए इसकी जड़ों की रोपाई की जाती है! सामान्य तौर पर 80 से 90 दिनों के अंदर जब मेंथा का पौधा डेढ़ से दो फीट का हो जाता है तो उसे काट लिया जाता है और इस तेल निकालने निकाला जाता है यह तेल बाजार में हजार बरसों से लेकर डेढ़ हजार रुपया प्रति लीटर/ किलो तक बिकता है। 

बाराबंकी के सितौली गौसपुर ब्लॉक के किस रामअचल पिछ्ले 8-10 सालों से मेंथा की खेती कर रहे हैं। उनके पास तीन बीघा जमीन है हर साल में दुख भी का जमीन पर मिनट की खेती करते हैं। राम अचल का कहना है कि इससे उन्हें करीब 50 से 60 हजार तक की आमदनी हो जाती है। यह घाटे का सौदा तो कतई नहीं है, क्योंकि मेंथा की कटाई के बाद धान की खेती कर लेते हैं।

मेंथा की पत्तियां या पौधे से तेल निकालने के लिए आसान विधि यानी टंकी से पिराई, का इस्तेमाल होता है। यह मशीन है छोटी बड़ी आकार की और परंपरागत व अत्याधुनिक सभी तरह की होती हैं। मेंथा उत्पादक छोटी किसानों को इसके लिए अधिक परेशान नहीं होता होना पड़ता। बाराबंकी की मेंथा पैदा करने वाले गांवों में कई लोगों ने यह मशीन लगा रखी हैं, जहां किसान मेंथा की पिराई कराते हैं। इसमें किसान को पिराई से निकलने वाले तेल का दसवां हिस्सा देना पड़ता है।

कैसे होती है मेंथा की खेती

मेंथा की बुवाई यों तो मार्च से लेकर जून तक की जा सकती है। लेकिन मार्च में बुवाई करना काफी फायदेमंद होता है।  इस मौसम में जमीन की नमी बनी रहती है। जड़ों की रोपाई ममें  पानी कम लगता है। अभी तक किसान पुराने तरीकों से मेंथा की बुवाई करते आ रहे हैं, जिसमें लागत भी ज्यादा आती थी और उत्पादन भी ज्यादा नहीं मिलता था, केंद्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान (CIMAP) के वैज्ञानिकों ने अगेती मिंट तकनीक विकसित की है, जिस तकनीक से बुवाई करके किसान ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं और लागत भी कम लगती है। 

नई तकनीक में मेंथा को आलू की तरह पंक्ति में लगाया छाता है। इससे बुवाई के लिए जड़ें कम लगती हैं और बाद में सिंचाई भी कम करनी पड़ती है। केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान ने मेंथा की कई उन्नतशील किस्में विकसित की हैं। इनमें अगेती सिम सरयू, सिम कोसी, सिम क्रांति किस्में किसान सबसे ज्यादा लगाते हैं। 

मेंथा की बुवाई से पहले खेत की कम से कम दो बार अच्छी तरह जोताई की जाती है। मिट्टी  को भुरभुरी होने पर उसमें मेंथा  की जड़ो की रोपाई की जाती है, जो हफ्ता - दस दिन में जमीन पकड़ लेती हैं, उसके बाद उसमें पत्तियां आने लगती हैं। अच्छी तरह पत्तियां आने के बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है। उसके करीब तीन हफ्ते में गुड़ाई कर खरपतवार को निकाला जाता है। दूसरी गुड़ाई दो महीने में की जाती है।

करीब 80 दिन में मेंथा के पौधे का रंग गहरा हरा हो जाता है, जो इस बात का संकेत है कि वह तैयार हो गया है, उसे जा सकता है। कटाई के बाद एक दिन धूप में सुखाने के बाद पिराई की जाती है। इसके करीब डेढ़ महीने बाद उसमें फिर से पत्तियां काटने लायक हो जाती हैं। ऐसा केवल अगेती किस्म की मेंथा में हो सकता है।

मेंथा की कटाई के बाद जड़ों को सुरक्षित रख लिया जाता है, ताकि अगली बार उनका उपयोग किया जा सके। इसके लिए आमतौर पर जूट के बोरे का इस्तेमाल किया जाता है। इससे जड़ों में नमी बनी रहती है। 

मेंथा उत्पादों का विपणन

मेंथा की पिराई से निकलने वाला तेल बेशकीमती वस्तु है। कई औषधियों, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री और खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग किया जाता है। हाल के वर्षों में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। उक्त सामग्रियां बनाने वाली कंपनियों के प्रतिनिथि या व्यापारी सीधे किसानों सै तेल खरीद लेते हैं। वर्तमान समय में मेंथा उत्पादक किसानों को एक लीटर मेंथा तेल को एक से डेढ़ हजार रुपए तक मिल जाते हैं।

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक राज्य है। देश के कुल मेंथा उत्पादन का 90% अकेले उत्तर प्रदेश में होता है। बाकी पंजाब, हरियाणा और गुजरात में पैदा होता है। केंद्रीय औषधीय एवं सगंध संस्थान (CIMAP) मेंथा की खेती को प्रोत्साहित करने और इससे संबंधित शोध कार्यों में जुटा है। संस्थान किसानों को प्रशिक्षण और उनका मार्गदर्शन करता है।


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