Role of Technology in Rural Development: प्रौद्योगिकी बदल सकती है ग्रामीण विकास की दशा और दिशा

 


ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन देश की एक बड़ी समस्या बन चुका है। हर साल भारी संख्या में ग्रामीण रोजी-रोटी और बेहतर जीवन की उम्मीदें लेकर शहर जाते हैं और वहीं के होकर रह जाते हैं। इसकी एक झलक बीते दिनों अयोध्या (उत्तर प्रदेश) में देखने को मिली।

करीब 2200 जनसंख्या वाले गौरा गांव (अयोध्या) के लगभग आधे लोग अस्थाई तौर पर दिल्ली, लखनऊ सहित देश के विभिन्न शहरों में रहते हैं। इनमें करीब 200 ऐसे युवा हैं, जो अपनी खत्मकर शहर चले गए। गांव में उनके परिजनों को उम्मीद है कि अच्छी नौकरी मिलने पर वे उन्हें भी शहर बुला लेंगे।

अपवाद नहीं है अयोध्या का गौरा गांव

यह अकेले गौरा गांव या अयोध्या की बात नहीं है। संख्या कम यो ज्यादा हो सकती है, शहर के असपास के गांवों को छोड़कर देश के अधिकतर गांवों की स्थिति यही है। पहले रोजगार और बेहतर जीवन की उम्मीदें लेकर शहर जाना फिर वहीं बस जाना, वर्तमान भारत की हकीकत है।

यह एक आम धारणा ही नहीं सच्चाई भी है कि ग्रामीण क्षेत्र शहरों की तुलना में अधिक गरीब हैं। रोजगार के अवसरों की कमी के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य तक सीमित पहुंच और बुनियादी ढांचे की कमी इसके मुख्य कारण हैं।

ग्रामीण स्तर पर बड़े उद्योग और कारखाने नहीं लग सकते, जिससे बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर पैदा हों और शहरों की तरह शिक्षा, स्वास्थ्य व संचार सेवाओं और आर्थिक गतिविधियों का विस्तार हो सके। लेकिन इसका यह अर्थ भी नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों का अभाव है।

प्रौद्योगिकी बदल सकती है ग्रामीण विकास की दिशा

कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प और कृषि आधारित छोटे और मझोले उद्यमों के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाया जा सकता है। इसमें अत्याधुनिक सूचना प्राद्योगिकी और कृषि नवाचार की निर्णायक भूमिका हो सकती है। इस प्रौद्योगिकी ने देश के कुछ हिस्सों में बड़ा प्रभाव डाला है। खासकर दक्षिण भारतीय राज्यों के किसानों और ग्रामीणों ने इस तकनीक को अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है।  

आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यमों में मोबाइल फोन की एक ऐसी देन है, जिसने लोगों के जीवन में कई बदलाव किए हैं। इससे संचार सेवा में तो सुधार हुआ ही है, उनके आपसी लेन-देन और व्यावसायिक गतिविधिों की कठिनाइयों को भी कम किया है। मोबाइल आधारित डिजीटलीकरण से जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक और मानवीय सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ है वहीं जन सामान्य में राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ी है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि हुई है।

सूचना प्रौद्योगिकी का ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ा प्रभाव उद्यमिता क्षेत्र में देखने को मिलता है। इंटरनेट के माध्यम से किसान, पशुपालक और कास्तकार अपने व्यवसाय से संबंधित नवीन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। किसान विभिन्न कृषि उपजों, उन्नत बीजों, खेती को नुकसान पहुंचाने वाले रोगों एवं कीटों और उनसे बचाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

इस तरह प्रोद्वोगिकी उन्हें अपने उत्पाद को बढ़ाने में मदद करती है, साथ ही उसका बड़े स्तर पर प्रचार करने और विपणन में भी सहायता मिलती है। इसके सथ ही इससे वे अपने कौशल में वृद्धि कर सकते हैं और किसान और पशुपालक अपने उत्पाद को प्रष्कृत करने, इसके लिए आवश्यक निवेश के स्रोतों, उपकरणों व उनके उपयोग और विपणन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के मद्देनजर सरकार ने एक जिला - एक उत्पाद’ (One District – One Product) योजना आरंभ की है। इस योजना के तहत देश के प्रत्येक जिले में उस उत्पाद आध्धरित उद्यमों को प्रोत्साहित किया जाना है, जो उस जिले में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से ग्रामीण इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।

इन जरूरतों को प्राथमिकता क्रम में पूरा किया जाना चाहिए

हालांकि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में डिजीटलीकरण को लेकर प्रतिबद्ध है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guaranty Scheme) सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के लिए ऑनलाइन भुगतान आवश्यक कर दिया गया है। लेकिन अभी भी ग्रामीण भारत इंटरनेट सेवाओं के मामले में शहरी क्षेत्रों से कफी पिछड़ा है।

ग्रामीण विकास में प्रौद्योगिकी की इस उपयोगिता के मद्देनजर निम्निलिखित कार्य प्राथमिकता के तौर पर किए जाने चाहिए;

1) उच्च गुणवत्ता वाली ब्रॉडबैंड या नेटवर्क सेवा सुनिश्चित करना, जिससे ग्रामीणों की इंटरनेट तक पहुंच बढ़े।

2) गुणवत्तापूर्ण और व्यावहारिक शिक्षा का प्रसार और युवाओं को प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण प्रदान करना।

3) ग्रामीण क्षेत्र में सहकारिता को प्रोत्साहित करना, जिससे वे सामूहिक आधार पर व्यवसाय के लिए प्रेरित हों।

4) ‘सतत विकास लक्ष्य के वैश्विक एजेंडा के तहत प्रगतिशील नीतियों का निर्माण और उनका क्रियान्वयन करना।

5) कृषि, बागवानी और पशुपालन के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों और अत्याधुनिक उपकरणों से ग्रामीणों को अवगत कराना।

6) संरचना विकास, मुख्य रूप से सड़कों, पेयलज योजनाओं, बिजली उत्पादन इकाइयों का निर्माण करना।

7) भौगोलिक और सामाजिक समानता के आधार पर 15 से 20 गांवों के बीच एक विपणन केंद्र स्थापित करना।

यह सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि ग्रामीण क्षेत्र, संसाधनों के मामले में शहरी क्षेत्रों से काफी आगे हैं। यदि वे पिछड़े हैं या शहरी क्षेत्रों की तुलना में गरीब हैं तो इसका मुख्य कारण है, जानकारी का अभाव। ग्रामीण युवा यदि यह समझते हैं कि शहर जाकर वे अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं तो यह उनकी भूल है। आज से 15-20 साल पहले की बात और थी। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मशीनीकरण के कारण अब पहले जैसी संभावना नहीं रही। ग्रामीण युवाओं को यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, देश और उनके लिए उतना अच्छा होगा।

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