e-NAM अर्थात ई-राष्ट्रीय कृषि विपणन, की बुनियादी शर्त है संचार सुविधाओं और मूलभूत संरचना का विकास


कृषि उपजों की सही कीमत मिले और समय पर उनकी खरीद हो जाए, कृषि की प्राथमिक जरूरत है। इसके बिना कृषि विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। क्योंकि किसान खाने भर के लिए फसल पैदा नहीं करता, इससे उसकी और भी जरूरतें जुड़ी होती हैं। इस दिशा में भारत सकरकार की ई-राष्ट्रीय कृषि विपणन (electronic National Agriculture Marketing - eNAM) पोर्टल सेवा एक महत्वपूर्ण पहल है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा अपने बजट भाषण में इस सेवा के उल्लेख से एक बार फिर ई-नाम की चर्चा होने लगी है। वित्त मंत्री ने कहा है कि देश की 1,362 कृषि मंडियों को इस पोर्टल से जोड़ा जा चुका है, 1.8 करोड़ किसान इसकी सेवाएं ले रहे हैं और वर्तमान समय में इससे 3 लाख करोड़ रुपए का कारोबार हो रहा है।

वित्त मंत्री ने अपने वक्तव्य सरकार के इस दावे को भी दुहराया है कि कृषि क्षेत्र समावेषी उच्चतर संवृद्धि और उत्पादकता की ओर बढ़  रहा है। कृषि क्षेत्र में स्टार्ट अप के माध्यम से प्रौद्योगिकी और नवाचारों को बढ़ा दिया जा रहा है।

-नाम पोर्टल क्या है?

-नाम पोर्टल कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत भारत में कृषि वस्तुओं के लिए एक राष्ट्रीय कृषि बाजार ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है। यह किसानों, व्यापारियों और खरीदारों को वस्तुओं में ऑनलाइन व्यापार की सुविधा प्रदान करता है।

इस पोर्टल को 14 अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉन्च किया था। इसी तरह की योजना यूपीए सरकार ने कर्नाटक में शुरू की थी। एनडीए सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया है। लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (Small Farmers Agri-Marketing Consortium½ इस पोर्टल का प्रबंधन करता है।

-नाम के तहत किसान अपने नजदीकी बाजार से अपने उत्पाद की ऑनलाइन बिक्री कर सकते हैं तथा व्यापारी कहीं से भी उनके उत्पाद के लिये मूल्य चुका सकते हैं। योजना का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना और कृषि उत्पादों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार का सृजन करना है।

-नाम पोर्टल के माध्यम से 2023 में 480 अरब रुपए का व्यपार हुआ था। इसमें व्यापार के लिए खाद्यान्नों, सब्जियों और फलों से संबंधित 90 जींसों को सूचीबद्ध हैं। इससे 1.66 करोड़ किसान, 1.30 लाख व्यापारी और 71,911 कमीशन एजेंट जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त 9 लॉजिस्टिक्स सर्विस एग्रीगेटर्स ने साझेदारी की है जिसमें 2,31,300 ट्रांसपोर्टर्स हैं, जो परिवहन सेवा जरूरतों को पूरा करने के लिये 11,37,700 ट्रकों को उपलब्ध करा रहे हैं।

ई-नाम पोर्टल की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें -

-नाम के विस्तार में गोदामों की भूमिका 

-नाम सेवा के विस्तार में वेयरहाउसिंग विकास और विनियामक प्राधिकरण (Warehousing Development and Regulatory Authority) की महत्वपूर्ण भमकिा रही है। प्राधिकरण ने इसमें पंजीकृत भंडारगृहों में भुगतान की सुविधा शुरू की गई है। इस से सीमांत और छोटे किसान अपने उत्पादों को पंजीकृत गोदामों में किसान अपने उत्पाद को रख सकते हैं। परिणामस्वरूप ई-नाम पोर्टल से जुड़ने वाले किसानों और व्यापारियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और प्रतिस्पर्द्धा की भावना भी बढ़ी है।  

ईनाम की कमजोरियां

आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के युग में कृषि जगत को इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग से जोड़ने की यह पहल निश्चित ही सराहनीय है। लेकिन देश में इस सेवा का उतना विस्तार नहीं हुआ जितना कि प्रचार किया गया है।

देश में करीब 6,900 अनाज मंडियां हैं जिनका संचालन कृषि उत्पाद विकणन समितियों (Agriculture Produce Marketing Committees) द्वारा किया जाता है। ई-नाम योजना शुरू हुए आठ साल पूरे होने को आए हैं लेकिन आज तक मा. 1,362 मंडियां (20 प्रतिशत से भी कम) और करीब 12 करोड़ किसानों में से मात्रा 1.8 करोड़ ही इससे जुड़ पाए हैं।

-नाम सेवा की इस धीमी रफ्तार की मुख्य वजह देश में संचार सुविधाओं की दयनीय स्थिति और मूलभूत संरचना का विकास न होना है। इसके साथ ही व्यवहार परिवर्तन और विश्वास-निर्माण इसके विस्तार की एक बड़ी बाधा है। स्पष्ट है कि इसके लिए जहां संरचना का विकास जरूरी है वहीं किसानों को श्ाििक्षत किए जाने की जरूरत है।

अधिक व्यावहारिक है कर्नाटक मॉडल

कर्नाटक में ईनाम जैसी ऑनलाइन मार्केटिंग सेवा कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय ई-मार्केट सर्विसेज (ReMS) नाम से शुरू हुई थी। आईआईएम बेंगलुरू के एक अध्ययन के मुताबिक इस सेवा के लागू होने के बाद राज्य के किसानों की औसत आय में 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

उक्त अध्ययन के मुताबिक लंबी दूरी के परिवहन के कारण किसानों की बाजार तक पहुंच का न होना, एपीएमसी मंडियों की कमी, भंडारण सुविधाओं का अभाव, उपज की गुणवत्ता जांच की अपर्याप्त सुविधा, एपीएमसी मंडियों में अच्छे बुनियादी ढांचे का न होना और सेवा के क्रियान्वयन के प्रति सरकार की उदासीनता ऐसे कारण हैं जिससे राष्ट्रीय स्तर पर इस सेवा का अपेक्षित विस्तार नहीं हो पाया है।

आईआईएम बेंगलुरू की रिपोर्ट में महत्वपूर्ण बात यह कही है कि कृषि विपणन के अखिल भारतीय मॉडल की तुलना में, क्षेत्रीय मॉडल अधिक स्वीकार किए गए हैं। ReMS जैसे सफल मॉडल के साथ सहयोग से इसके विस्तार में तेजी लाई जा सकती है। इससे मंडियों की आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित किया जा सकता है।   

वस्तुतः भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहां कि देश की 50 करोड़ से अधिक आबदी कृषि पर निर्भर है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान निरंतर घटता जा रहा है, कृषि उपजों के विपणन की व्यावहारिक योजना का होना नितांत आवश्श्यक है। ईनाम सेवा इसमें कारगर पहल हो सकती है। लेकिन इसके लिए बुनियादी संरचना में सुधार और किसानों को शिक्ष्ति किया जाना जरूरी है।

Source: https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/increase-in-number-of-mandis-on-e-nam-portal 

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