MGNREGA : क्या मनरेगा को चुनावी मुद्दा बनाना सकती है कांग्रेस ?




 कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह पारदर्शिता यानी डिजीटलीकरण के नाम पर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियिम) के तहत रोजगार की मांग को हतोत्साहित कर रही है। कांग्रेस नेता ने यह बात ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 के छः महीने पूरे होने पर मनरेगा बजट की समीक्षा के बाद कही है, जिसमें मनरेगा को 6,146.93 करोड़ रुपए के घाटे की बात कही गई है, इसके साथ ही कई अखबारों ने सूत्रों के हवाले कहा है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से मनरेगा के लिए 23,000 करोड़ रुपए के पूरक अनुदान की मांग की है।

ज्ञात हो कि वित्तीय वर्ष 2.23-24 में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे, जो कि वर्ष 2022-23 में आबंटित 73,000 कतरोड़ रुपए से 18 प्रतिशत और संशोधित बजट अनुमान 89,000 करोड़ रुपए से 33 प्रतिशत कम था। बजट की कमी के कारण कई राज्यों में मनरेगा श्रमिकों का भुगतान नहीं किया जा सका है, जिनमें अधिकतर गैर-बीजेपी शासित राज्य है। 

ग्रामीण विकास मंत्रालय की समीक्षा ऑनलाइन किए जाने से ठीक पहले प. बंगाल से आए मनरेगा श्रमिकों ने मजदूरी का भुगतान किए जाने की मांग को लेकर नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर में धरना प्रदर्शन भी किया था। उससे पहले विभिन्न राज्यों के मनरेगा श्रमिकों ने मनरेगा स्कीमों के उिजीटलीकरएा के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन किया था। श्रमिकों का सर्वाधिक विरोध मनरेगा स्कीमों में कार्यरत मजदूरों की दिन में दो बार ऑनलाइन हाजिरी लगाने की व्यवस्था से था, क्योंकि इंटरनेट सुविधा उपलब्ध न होने से कार्यरत श्रमिकों की हाजिरी दर्ज न हो सकती है। 

मनरेगा श्रमिक पहले से ही मजदूरी सीधे उनके खातों में भेजे जाने से भी दुःखी थे, क्योंकि बैंक खातों को आधार से लिंक किया जाना आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक भारी संख्या में लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं। ऐसे श्रमिकों के मनरेगा जॉबकार्ड रद्द कर दिए गए थे। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2021 में देश में 15 करोड़ 63 हजार परिवारों के जॉब कार्ड थे। श्रमिकों के आधार कार्ड न होने और श्रमिकों के गांवों से पलायन आदि कारणों से वर्ष 2.022-23 में करीब 5 करोड़ 17 लाख 71 हजार परिवारों के जॉबकार्ड एमआईएस (प्रबंधन सूचना प्रणाली) से हटा दिए गए थे। इस वर्ष अब तक करीब 74 जाख लोगों के नाम एमआईएस से हटाए गए हैं। 

वर्ष 2005 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा मनरेगा कानून बनाकर आरंभ की गई इस योजना में ग्रामीण गरीबों के लिए जीवनयापन का एकमात्र जरिया होने साथ-साथ कृषि व पशुपालन को प्रोत्साहित करने, संरचनागत विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्धन में अहम् भूमिका के लिए जाना जाता है। भारत के ही नहीं दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों ने इसे दुनिया के गरीब एवं विकासशील देशों के लिए अनुकरणीय बताया है। इधर जब सरकार कोरोना संकट के समय से देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिए जाने का प्रचार कर रही है तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि 5 करोड़ से अधिक परिवरों को मनरेगा स्कीमों के लाभों से वंचित क्यों कर दिया गया? 

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार के कई मंत्री अक्सर पूर्ववर्ती कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की मनरेगा के लिए अपेक्षित धन आबंटित न किए जाने को लेकर आलोचना करते रहते है। लेकिन सत्यता यह है कि बीते 10-12 सालों में देश के सालाना बजट में मनरेगा बजट काफी कम हुआ है। मसलन वर्ष 2012-13 के केंद्रीय बजट 14,90,925 करोड़ रुपए में मनरेगा के लिए 33,000 करोड़ रुपए यानी बजट का 2.21 प्रतिशत जारी किए गए थे और वर्ष 2023-24 के बजट 45,03,097 करोड़ में 60,000 करोड़ रुपए मनरेगा के लिए आबंटित किए गए हैं जो कि बजट का 1.33 प्रतिशत है। 

मनरेगा स्कीमों में बजट की कमी और डिजीटलीरण का असर ग्रामीण क्षेत्रों में स्पष्ट देखने को मिल रहा है। इससे न केवल ग्रामीण गरीबों के रोजगार में कमी आई है बल्कि समय पर भुगतान न होने से ग्रामीण विकास विभाग के निचले स्तर के कर्मचारियों और पंचायत प्रतिनिधियों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। मनरेगा श्रमिकों द्वारा समय पर भुगतान न होने से सरकारी कर्मचारियों एवं पंचायत प्रतिनिधियों पर हमले और कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा श्रमिकों की पिटाई की खबरें अखबारों की सुर्खियों के रूप में सामने आ रही हैं।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मनरेगा की उपेक्षा को मोदी सरकार की गरीबों के विरुद्ध सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया है। इससे यह सहज ही यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस जातिगत जनगणना और विकास में पिछड़ों, दलितों एवं आदिवासियों की भागीदारी और पुरानी पेंशन योजना के बाद मनरेगा को चुनावी मुद्दा बनाने वाली है? कांगेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के बाद जिस तरह किसानों, मजदूरों, ट्रक ड्राइवरों, मोटर मैकेनिकों, कारपेंटरों आदि के बीच जाकर उनसे संवाद किया है उसे देखकर तो यही लगता है। कांग्रेस नेता यह कैसे भ्ूल सकते हैं कि 2009 में कांग्रेस की लगातार दूसरी बार जीत में मनरेगा और सूचना का अधिकार कानून की निर्णायक भूमिका थी और वर्तमान सरकार ने दोनों को कमजोर किया है? 

इन्द्र चन्द रजवार 

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