प्रधानमंत्री 12 अक्टूबर को
अलमोड़ा जिले में स्थित शौकियाथल हेलीपैड तक हेलीकॉप्टर से और उसके बाद सड़क मार्ग
से जागेश्वर पहुंचेंगे। जागेश्वर में पूजा-अर्चना के बाद पिथौरागढ़ जिले में स्थित
नारायण आश्रम के लिए लिए रवाना होंगे। नारायण आश्रम में कुछ समय बिताने के बाद वे
आदि कैलाश जाएंगे, जहां वे ज्येलिंगकांग पर्वत, जिसे ओम पर्वत भी कहा जाता है, पर स्थित शिव मंदिर में पूजा-अर्चना
करेंगे। कहते हैं इस पर्वत से कैलाश-मानसरोवर के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा
सकता है।
हालांकि हिंदू अर्थात सनातन धर्म में
पितृपक्ष के दौरान मंदिरों में पूजा-अर्चना वर्जित है लेकिन मीडिया खबरों के
अनुसार जागेश्वर और आदि कैलाश के मंदिरों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सत्ता
में वापसी के लिए पूजा रखी गई है। तत्पश्चात पिथौरागढ़ के नैनीसैनी हवाई पट्टी के
लिए उड़ान भरेंगे और पिथौरागढ़ स्टेडियम में जनसभा को संबोधित करेंगे। हवाई पट्टी से
स्टेडियम तक 4 किलोमीटर के बीच प्रधानमंत्री के भव्य स्वागत
की तैयारी की गई है। 20 स्थानों पर प्रधानमंत्री की काफिले में फूल
बरसाए जाएंगे। प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए पिथौरागढ़ शहर का चमकाया गया है। दीवारों
में रंगरोगन और आकर्षक चित्रकारी की गई र्ह। सशस्त्र सेनाओं और पुलिस के 1200 जवान प्रधानमंत्री के काफिले में
रहेंगे।
स्टेडियम में प्रधानमंत्री की जनसभा के
लिए विशेष व्यवस्था की गई है। मंच पर प्रधानमंत्री के निकट कौन-कौन नेता और अफसर
बैठेंगे, पार्टी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता कहां रहेंगे, मीडिया
के लोग कहां बैठेंगे आदि तमाम बातों का ध्यान रखते हुए सभा स्थल को संवारा गया है।
स्टेडियम में प्रवेश के लिए विशेष पास जारी किए जाने की भी बात कही जा रही है।
पिथौरागढ़ में जनसभा को संबोधित करने के बाद प्रधानमंत्री रात्रि विश्राम के लिए
चंपावत जिले में स्थित मायावती आश्रम के लिए रवाना हो जाएंगे और अगले दिन यानी 13
अक्टूबर को मायावती से दिल्ली लौट जाएंगे।
प्रधानमंत्री की इस यात्रा की
तैयारियां बीते करीब डेढ़ महीनों से चल रही है। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री किन
नेताओं, अफसरों और अन्य खास या आम लोगों से मिलेंगे, पूजा-अर्चना
कराने वाले पंडित कौन होंगे, इस दौरान उनका परिधान क्या होगा यानी
वे सामान्य बस्त्रो में रहेंगे या स्थानीय परंपरागत वस्त्र पहनेंगे, पगड़ी
में रहेंगे या पहाड़ी टोपी धारण करेंगे आदि तमाम बातों का ध्यान रखा जा रहा है।
हालांकि कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराने
की भी तैयारी की है लेकिन उन्हें इसका अवसर मिलेगा या नहीं कहना कठिन है।
प्रधानमंत्री की इस यात्रा के कारण दो
दिन 12 और 13 अक्टूबर को टनकपुर-पिथौरागढ राष्ट्रीय राजमार्ग
को पूरी तरह बंद रखने का निर्णय लिया गया है। पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों को मैदानी
क्षेत्रों से जोड़ने वाला एकमात्र राजमार्ग है। रोजाना 900 से अधिक वाहन -
बसें, ट्रक व कारें इससे गुजरते हैं। साथ ही दो दिनों के लिए पिथौरागढ़,
चंपावत
और लोहाघाट के आसपास के स्कूलों को बंद रखने का निर्णय लिया गया है।
चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी का पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र से पुराना रिश्ता है। 1987 या
88 में उन्होंने इस क्षेत्र की यात्रा की थी, तब वे नारायण
आश्रम में ठहरे थे। पिछले दिनों दिल्ली मेट्रो में स्कूली बच्चों के साथ यात्रा
में प्रधानमंत्री ने उस यात्रा का स्मरण करते हुए धारचूला की एक लड़की से हुई
मुलाकात का जिक्र भी किया था। कहते हैं उस यात्रा के बाद ही भगवान शिव की प्रेरणा
से उन्होंने राजनीति में आने का निर्णय लिया था।
लेकिन कुछ लोगों को यह भी अंदेशा है कि
कहीं बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीमांत की अंतिम यात्रा साबित न हो।
संयुक्त उत्तर प्रदेश के जमाने से ही कहा जाता है कि पिथौरागढ़ आने वाले सत्तासीन
नेताओं को उसके तुरंत बाद अपनी सत्ता गंवानी पड़ी है। उत्तर प्रदेश के जमाने में
वीर बहादुर सिंह, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी को और
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद विजय बहुगुणा और त्रिवेंद्र रावत को पिथौरागढ़ की
यात्रा के बाद ही मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।
बहरहाल, प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा को लेकर कई तरह की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। इस यात्रा
का मकसद केवल पूजा-अर्चना तो नहीं हो सकता! खासकर तब जबकि पांच राज्यों - राजस्थान,
मध्य
प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनावों की घोषणा हो
चुकी है और अचोषित रूप से लोकसभा चुनावों की तैयारी चल पड़ी है। मणिपुर पांच महीनों
से जल रहा है वहां जाने के लिए तो उनके पास समय नहीं है, फिर पिथौरागढ़
क्यो जा रहे हैं? आखिर इस यात्रा से वे देश को क्या संदेश देना
चाहते हैं?
Pic. : Narayan Ashram, Adi Kailash, Jageshwar Dham and Mayawati
इन्द्र चन्द रजवार
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