MgNREGA : हरियाणा में शुरू हुआ फेस स्कैनिंग मशीन से मजदूरों की हाजिरी का ट्रायल


सरपंच अपने चहेतों की मनमर्जी से हाजिरी नहीं लगवा सकेंगे। 

किसी अन्य के जॉबकार्ड पर काम करने पर भी लगेगी रोक।

मनरेगा को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने के लिए सरकार की योजना के अनुरूप हरियाणा सरकार ने फेस स्कैनिंग मशीन से मनरेगा मजदूरों की हाजिरी लगाने का काम शुरू कर दिया है। 20 अक्टूबर को राज्य के फतेहाबाद जिले के टोहाना विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत गांव ललौदा, डांगरा मे बतौर ट्रायल इसकी शुरूआत हुई है। 

मनरेगा स्कीमों में बोगस हाजिरी पर रोेकने के मकसद से आरंभ की गई इस व्यवस्था से कार्यस्थल पर मजदूरों की दो बार फेस स्कैनिंग मशीन हाजिरी ली जाएगी। इससे जहां सरपंच अपने चहेते मजदूरों की मनमर्जी से हाजिरी नहीं लगवा सकेंगे वहीं मनरेगा जॉबकार्ड होल्डर के नाम पर कोई अन्य व्यक्ति काम कर पाएगा।

हरियाणा के विकास एवं पंचायत मंत्री देवेंद्र सिंह बबली, जो टोहाना से विधायक भी हैं, ने योजना का शुभारंभ करते हुए कहा कि  ने कहा कि अब मनरेगा मजदूरों की हाजिरी में धांधली नहीं हो सकेगी। मनरेगा मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (एम.एम.एम.एस.) एप द्वारा कार्यस्थल पर मौजूद मजदूरों की दिन में दो बार हाजिरी लगने से अब मजदूरों की बोगस हाजिरी लगना बंद हो जाएगा। श्री बबली ने कहा कि फेस स्कैनिंग मशीन से हाजिरी लगाने का ट्रायल टोहाना से शुरू करने का सुझाव उन्होंने ही केंद्र सरकार को दिया था।

फेस स्कैनिंग मशीन से हाजिरी के ट्रायल के उद्घाटन के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की एक टीम टोहाना पहुंची थी। वीरवार 20 अक्टूबर को कार्यस्थल पर मजदूरों के फेस स्कैन मशीन से हाजिरी का ट्रायल किया गया और उसे एम.एम.एम.एस. ऐप में अपलोड किया गया।

ज्ञात हो कि फेस स्कैनिंग मशीन से हाजिरी लगाए जाने का कई राज्यों के मनरेगा मजदूर विरोध कर रहे हैं। इसकी मुख्य वजह उन राज्यों में इंटरनेट नेटवर्क का सही न होना या अभाव है। खासकर, जिन स्थानों पर मनरेगा कार्यस्थल पर तो एमएमएमए से हाजिरी लगाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा में यह समस्या नहीं है।

हरियाणा में मनरेगा को लेकर दूसरी ही तरह की समस्या है। सर्वविदित है कि हरियाणा में मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी सबसे ज्यादा है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में जहां मनरेगा मजदूरों का रोजना 220 से 250 रुपए मिलते हैं वहीं हरियाणा में मनरेगा मजदूरों को रोजना 357 रुपए मिलते हैं। इसके बावजूद लोग हरियाणा में मनरेगा स्कीमों मे काम नहीं करना चाहते। 

करीब 3 करोड़ 9 लाख आबादी वाले हरियाणा में कुल 13.03 लाख जॉबकार्ड बने हैं उसमें से 9.73 लाख ही एक्टिव हैं और कुल 22.95 लाख मनरेगा मजदूर हैं, इसमें से भी 48 प्रतिशत यानी अनुसूचित जनजाति के लोग हैं। असल में, ये केवल आंकड़े हैं। सच्चाई ये है कि राज्य में स्थानीय लोगों में बिरले ही मनरेगा स्कीमों में काम करना चाहते हैं। मनरेगा स्कीमों का काम या तो ठेके पर कराए जाते हैं या फिर प्रवासी मजदूर और उनके परिजन स्थानीय जॉबकार्ड धारकों के नाम पर काम करते हैं, जिन्हें सरकार द्वारा तय मजदूरी से कम दिहाड़ी दी जाती है। 

मनरेगा स्कीमों में स्थ्ज्ञानीय लोगों के काम न करने की मुख्य वजह राज्य का आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और कृषि और ऑद्योगिक रूप से विकसित होना हैं। प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से कर्नाटक और तेलंगाना के बाद सबसे समृद्ध राज्य है। (हालांकि, सिक्किम, गोवा, दिल्ली और चंडीगढ़ की प्रतिव्यक्ति आय भी हरियाणा से अधिक है, लेकिन इनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति देश के अन्य राज्यों से बिल्कुल अलग है।) राष्ट्रीय स्तर पर जहां सालाना प्रतिव्यक्ति आय 98.37 हजार है वहीं हरयिाणा की 3.79 लाख है।

यह सच है कि हरियाणा की गिनती देश के उन राज्यों में होती है जहां हाल के वर्षों में बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ी है। लेकिन इसका समाधान मनरेगा जैसी स्कीमों से नहीं हो सकता। दूसरी बात यह भी है कि दिल्ली से सटा होने के कारण हरियाणा में जिस तरह ऑद्योगिक और व्यावसायिक कंपनियों का जाल बिछा है उससे कारण भी ग्रामीण युवा मनरेगा जैसी सरकारी स्कीमों में काम नहीं करना चाहते। व्यावहारिक भी यही है कि जब गांव में गांव से 25-30 किमी की दूरी में किसी फैक्टरी या कंपनी में रोजना 500 रुपए से 800 रुपए तक की दिहाड़ी मिल जाती है तो वे मनरेगा में काम क्यों करें।

दुर्भाग्य तो यह है कि गुरुग्राम, फरीदाबाद से लेकर सिरसा, हिसार तक में लगी फैक्टरियों या कंपनियों में स्थानीय युवकों को काम नहीं मिलता। उनमें भी स्थायी नौकरी हो या दिहाड़ी, काम करने वाले बाहरी लोग ही हैं, जिन्हें प्रचलित भाषा में प्रवासी मजदूर कहा जाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार तब राज्य में करीब 13.33 लाख प्रवासी मजदूर थे। इसमें वे खेत मजदूर और निर्माण मजदूर शामिल नहीं हैं जो फसल की बुवाई व कटाई के समय औश्र निर्माण कार्यों के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, राजसथान व मध्य प्रदेश से लाए जाते हैं। असल में मनरेगा स्कीमों में स्थानीय लोगों के जॉबकार्ड पर ऐसे ही प्रवासी मजदूर अथवा उनके परिजन ही काम करते हें।

फेस स्कैनिंग मशीन से हाजिरी लगाने की व्यवस्था से संभव है कि बोगस हाजिरी पर रोक लग जाए लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार देने का मसला इससे हल होने वाला नहीं है। इसके लिए प्रादेशिक और स्थानीय जरूरतों के मुताबिक मनरेगा स्कीमों और उसकी कार्यप्रणाली में बदलाव जरूरी है। यह तभी हो सकता है जब बेरोजगारी खत्म करना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास सरकार की प्राथमिकता हो।

इन्द्र चन्द रजवार 

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1 टिप्पणियाँ

  1. मनरेगा श्रमिकों के लिए यह अच्छी खबर है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि वित्त मंत्रालय मनरेगा के लिए जल्द ही 28 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त अनुदान की स्वीकृति प्रदान करेगा।

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