मनरेगा श्रमिकों के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (Aadhaar-Based Payment System) हुई अनिवार्य

 ग्रामीण गरीबों को सरकार का नए साल का तोहफाजानकारों ने किया तंज

अंततः भारत सरकार ने सभी मनरेगा श्रमिकों के लिए आधार-आधारित प्रणाली भुगतान प्रणाली (Aadhaar-Based Payment System - ABPS) को अनिवार्य कर दिया है। अर्थात सभी मनरेगा श्रमिकों को अपने जॉब कार्ड को आधार से लिंक करना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके पारिश्रमिका का भुगतान नहीं हो पाएगा। इसके लिए कोई सरकारी कर्मचारी अथवा जनप्रतिनिधि जवाबदेह नहीं होगा।

हालांकि मनरेगा श्रमिकों के सभी तरह के भुगतान एबीपीएस से कराए जाने की तैयारी लंबे समय से चल रही थी। लेकिन नए साल के पहले दिन से इस प्रणाली का लागू होना ग्रामीण गरीबों के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके अब तक आधार कार्ड नहीं बने हैं। यही कारण है कि कई जानकारों ने इस पर ग्रामीण गरीबों को सरकार का नए साल का तोहफाकहकर तंज किया है।

पांच बार बढ़ाई गई समय सीमा
केंद्र ने राज्य सरकारों को एबीपीएस को लागू करने के लिए डाटाबेस तैयार का पहला आदेश 30 जनवरी, 2023 को जारी किया था। तत्श्चात 1 फरवरी, 31 मार्च, 30 जून, 31 31 अगस्त और दिसंबर, 2023 तक इसकी समय सीमा बढ़ाई गई। जिससे राज्य सरकारों को डेटाबेस का मिलान करने का समय मिल गया था।

एबीपीएस प्रणाली लागू करने की इस प्रक्रिया में, पहली बार में ही भारी संख्या में श्रमिकों को जॉबकार्ड सूची से बाहर होना पड़ा है। समय सीमा बढ़ाए जाने के साथ-साथ इसमें वृद्धि होती गई है।

करोड़ों श्रमिक अभी भी अपात्र

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत 25.25 करोड़ श्रमिक पंजीकृत हैं, जिनमें से 14.35 करोड़ को सक्रिय श्रमिक है। 27 दिसंबर सक्रिय श्रमिकों में 12.7% अभी भी एबीपीएस भुगतान के इस तरीके के लिए अभी भी अयोग्य हैं।

मनरेगा योजनाओं संबद्ध अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को देखते हुए ण्बीपीएस प्रणाली लागू करने की समय सीमा को बढ़ाया जाना चाहिए था, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके। लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ऐसा नहीं मानता। मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि समय सीमा दोबारा न बढ़ाने का निर्णय सक्रिय श्रमिकों की मांग पर लिया गया है। हैरत की बात यह है कि मंत्रालय के अनुसार सक्रिय श्रमिक वे हैं जिन्होंने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में कम से कम एक दिन काम किया है।

7.6 करोड़ जॉब कार्ड हटाए गए

दूसरी ओर इस बात की भी चर्चा हैं कि मनरेगा श्रमिकों के भुगतान को पूर्णतः एबीपीस आधारित बनाने के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र सरकार के दबाव था। का सामना करते हुए, राज्यों ने कई कार्ड हटा दिए हैं जो आधार भुगतान के लिए पात्र नहीं थे। इस कारण भी कई जॉबकार्ड सूची से हटा दिए गए। ऐसे मामलों में आधार और जॉबकार्ड के बीच विसंगतियां होना प्रमुख है, जैसे कि श्रमिकों के नाम की वर्तनी (Spelling) अलग-अलग होना। कई कार्ड इस नोटिस के साथ सूची से हटा दिए गए कि "श्रमिक काम करने को तैयार नहीं है"।

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं के संघ लिब टेक इंडिया ने कहा है कि एबीपीएस प्रणाली लागू करने के लिए अप्रैल 2022 से ही केंद्र सरकार दबाव था। पिछले 21 महीनों में 7.6 करोड़ मनरेगा श्रमिकों को सिस्टम से हटा दिया गया। लिब टेक इंडिया के एक वरिष्ठ शोधकर्ता चक्रधर बुद्ध ने कहा, ''इसके लिए काफी हद तक एबीपीएस की अव्यावहाकिता को जिम्मेदार माना जा सकता है, जैसा कि कई जमींनी सूचनाओं से स्पष्ट होता है।''

चक्रधर बुद्ध स्पष्ट करते हैं कि एबीपीएस लागू होने से पंजीकृत मनरेगा श्रमिकों में एक तिहाई से अधिक अनिवार्य रूप से काम के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। यह संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का सीधा उल्लंघन है। सरकार को न केवल एबीपीएस के अनिवार्य कार्यान्वयन को रद्द करना चाहिए, बल्कि राज्यों को गलती से हटाए गए श्रमिकों को बहाल करने और काम के अवसरों के नुकसान के लिए उचित मुआवजा प्रदान करने का भी निर्देश देना चाहिए।

एबीपीएस प्रणाली क्या है ?

एबीपीएस ऑनलाइन वित्तीय लेन-देन प्रणाली है, जिसमें उपभोक्ता अपने 12 अंकों के आधार नंबर का उपयोग वित्तीय पते के रूप में करता है। इसके लिए उपभोक्ता का आधार विवरण उसके जॉब कार्ड से जुड़ा होना चाहिए; उसका आधार विवरण उसके बैंक खाते से जुड़ा होना चाहिए; उसके आधार को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया  (एनसीपीआई) डेटाबेस के साथ मैप किया जाना चाहिए; और अंत में, बैंक की संस्थागत पहचान संख्या को एनपीसीआई डेटाबेस के साथ मिलाया जाता है। मिलान ऐसा न होने पर भुगतान नहीं हो पाता।

असल में एबीपीएस प्रणाली भारत सरकार की अति महत्वाकांक्षी डिजीटल इंडियाका आधार है। यों तो सरकार इसे सभी क्षेत्रों में लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। लगभग सभी सरकारी भुगतान इसी प्रणाली के तहत किए जाते हें। इसके प्रमुख तीन कारण हैं, एक वित्तीय अनियमितताओं यानी भ्रष्टाचार पर रोक लगाना, दूसरा मैनुवल भुगतान में होने वाली देरी को समाप्त करना और तीसरा बैंको पर दबाव कम करना।

समस्या का समाधान क्या गकता है ?

निश्चित ही यह प्रणाली मनरेगा के लिए भी उतनी ही उपयोगी है जितनी अन्य क्षेत्रों के लिए। लेकिन मनरेगा श्रमिकों सहित ग्रामीण विकास से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी, पंचायत प्रतिनिधि और मनरेगा से जुड़े सामाजिक र्काकर्ता इसका विरोध करते आए हैं। इसकी वजह ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं का अपर्याप्त होना और भारी संख्या में लोगों का आधार न बन पाना है।

चूँकि मनरेगा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा देना और ग्रामीण गरीबों को न्यूनतम रोजगार का अधिकार देना है। इस अत्याधुनिक भुगतान प्रणाली से न केवल यह योजना विघटित हो सकती है बल्कि इसका असर सम्पूर्ण ग्रामीण विकास प्रक्रिया पर भी पड़ सकता है। लिहाजा मनरेगा भुगतान के लिए एबीपीएस अनिवार्य करने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों बुनियादी संरचना के विकास और तकनिकी सेवाओं की आपूर्ति पर ध्यान दिया जाना चाहिए।


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1 टिप्पणियाँ

  1. मनरेगा योजनाओ में भ्रष्टाचार को रोकने मैं यह कारगर कदम हो सकता है। लेकिन इससे जौबकार्ड को हटाना जरूरतमंद लोगों को उनके काम के अधिकार से वंचित रखना ठीक नहीं है।सरकार को इस दिशा में भी सोचना चाहिए।

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