सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal) को लक्षित है ‘ग्राम ऊर्जा स्वराज’ का विचार

पर्यावरण प्रदूषण आधुनिक विश्व व्यवस्था की प्रमुख चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र संघ का सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal) इसी चुनौती को लक्षित कार्यक्रम है। भारत सरकार ने ग्राम ऊर्जा स्वराजके सोच के साथ आरंभ स्वच्छ और हरित गांवकार्यक्रमों के माध्यम से उल्लेखीय पहल की है। जमीनी स्तर पर सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए विचार-विमर्श हेतु पंचायती राज मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्धाज की अध्यक्षता में संपन्न, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संथानों के अधिकरियों की बैठक, इसका ताजा उदाहरण है।

4 जनवरी, 2024 को पंचायती राज मंत्रालय में आयोजित इस बैठक में नवीन और नवकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारतीय सौर ऊर्जा निगम, भारतीय नवकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी के अधिकारियों सहित भारतीय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा महासंध (National Solar Energy Federation of India) टाटा पावर, सन मास्टर, एक्सिस इनर्जी, आईबी सोलर, अहसोलर, एयरो कॉम्पैक्ट आदि निजी क्षेत्र के उपक्रमों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस मौके पर श्री भारद्वाज ने संयुक्त राष्ट्र सीओपी-26 (Conference of the Parties-26) के ग्लासगो में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (Climate Change Conference)  में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि पंचायती राज मंत्रालय ग्राम ऊर्जा स्वराजके सोच का साकार करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इस रणनीति प्रयास का उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं को नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ा देकर टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा के राष्ट्रीय एजेंडे में योगदान करना है।

क्यो जरूरी है टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा?

पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिसका सामना कोई भी देश अकेले नहीं कर सकता है। इससे निजात पाना के लिए यह जरूरी है कि पूरी दुनिया एक साथ आगे बढ़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो सम्मेलन में इसे वन-वर्ल्ड मूवमेंटकहकर संबोधित किया था और लाइफ यानी लाइफस्टाइल फॉर इंवारमेंट को का नारा दिया था। सम्मेलन में सतत विकास लक्ष्य-2030 (DPG-2030) के लिए 17 मानक तय किए गए थे, जिन्हें भारत सरकार ने नौ विषयों के अंतर्गत समाहित कर पंचायती राज संस्थाओं की भागीदारी से उन्हें हासिल करने की योजना बनाई है।

सतत विकास लक्ष्य को लक्षित ये नौ विषय हैं; 1) गरीबी मुक्न और उन्नत आजीविका युक्त गांव, 2) स्वस्थ गांव, 3) बाल हितैषी गांव, 4) जल पर्याप्त गांव, 5) हरित एवं स्वच्छ गांव, 6) गांवों में आत्मनिर्भर अधेरंचना, 7) सामाजिक रूप में सुरक्षित गांव, 8) सुशासन से युक्त गांव, 9) महिला हितैषी गांव।

नियंत्रण में पंचायतों की भूमिका

यह विचार-विमर्श का विषय हो सकता है कि देश में आधुनिक तीन स्तरीय एकीकृत पंचायती पंचायती राज व्यवस्था के लागू होने के बाद इन लक्ष्यों को किस हद तक हासिल किया जा सका है? परंतु इस तथ्य को नलरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि हरित और स्वच्छ गांवके लक्ष्य का हासिल करने के उल्लेखनीय प्रयास हुए है।

स्वच्छ एवं हरित गांवथीम के तहत पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग प्राकृतिक संसाधप प्रबंधन जैव विविधता संरखण, अवशिष्ट प्रबंधन, वनीकरण, जल संसाणनों का संरक्षण आदि कार्यक्रम आरंभ किए गए है। इसमें जहां स्वच्छ भारत मिशनजैसी कल्याणकारी योजना की अपनी भूमिका है तो वही रोजगार और संरचनागत विकास को लक्षित महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MgNREGA) के तहत कराए जा रहे कार्यों अपना यांगदान है।

पंचायता राज संस्थाओं की केंद्रीय निधि के तहत कराए जाने वाले कार्य हों या मनरेगा के तहत कराए जाने कार्य, लगभग सभी  से ग्रामीण अधिरंचना में काफी सुधार से लेकर प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण और उनके संवर्धन पर केंद्रित होते हैं। देश के कई राज्यों, मुख्यतः जहां स्थानीय स्वशासन और पंचायती राज प्रणाली पहले से ही मजबूत रही है, में उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। उन राज्यों के ग्रामीणों ने सतत विकास लक्ष्य के तहत निश्चित कार्याक्रमों का पूरा लाभ उठाया है।

ग्राम ऊर्जा स्वराज और पंचायतें

हरित ऊर्जा अर्थात प्रदूषण रहित ऊर्जा की ही बात करें तो देश के कई राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं ने इस दिशा में सराहनीय और अनुकरणीय काम किए हैं। उदाहरण के तौर पर करेल के वायनाड़ जिले की मीनानगढ़ी ग्राम पंचायत में अवशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के तहत कंपोस्ट खाद तैयार कर न केवल किसानों को रसायनिक खादों से मुक्त कराया है बल्कि उनकी आय में भी बढ़ोत्तरी की है।

इसी तरह महाराष्ट्र के थाणे जिले में टीकेकरबाड़ी ग्राम पंचायत ने अवशिष्ट प्रबंधन के जरिए बायोगैस प्लांट स्थापित कर एक उदाहरण पेश किया है तो उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में हसुड़ी ग्राम पंचायत में स्मॉगटावर के जरिए कार्बन-उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण काम किया है। सिद्धार्थनगर जिले की यह पंचायत पहले ही सौर ऊर्जा उत्पादन से स्ट्रीटलाइट की व्यवस्था सुनिश्चित करने के कारण चर्चा में आ चुकी थी।

निजी क्षेत्र की हो सकती है अहम् भूमिका

पंचायती राज संस्थाओं के आय के स्रोतों में पंचायतों को केंद्रीय और राज्य वित्त आयोगों से मिलने वाले अनुदानों और पंचायतों की निजी आय के अतिरिक्त सीएसआर यानी कार्पोरेट सोशल रिपॉन्सब्लिटी (Corporate Social Responsibility) फंड पमुख है। सौर ऊर्जा अथवा अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र की कंपनियां यदि अपने सीएसआर फंड का उपयोग इस कार्य के लिए करती हैं तो स्वच्छ और हरित गांवको साकार होने में देर नहीं लगेगी।

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि क्या देश की पंचायतें इस लक्ष्य के प्रति सजग हैं! इसके लिए पंचायती राज संस्थाओं को राजनैतिक दबाव से मुक्त रखना और सभी राष्ट्रीय कार्यक्रमों को उन तक पहुंचना आवश्यक है। आज देश की पंचायतों की स्थिति 1994 से पहले की पंचायतों से काफी अलग हैं। पढ़े-लिखे और सुशिक्षित लोग पंचायत प्रतिनिधि हैं, वे स्वयं विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों में निहित संभावनाओं का लाभ उठा सकते हैं, बशर्ते उन्हें पूरी स्वायत्ता से काम करने का अवसर मिले।

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