Advantages of Organic Farming: देश में बढ़ रहा है जैविक कृषि का क्रेज, क्या हैं नफे-नुकसान


बीते कुछ सालों में भारत सहित दुनिया के कई देशों में जैविक कृषि
 (Organic Farming) के प्रति पढ़े लिखे लोगों का रुझान बढ़ा है। इजीयिरिंगकंप्यूटर साइंसबैंकिंग और और यहां तक कि प्रशासनिक सेवाओं के शानदार कैरियर को छोड़कर युवा जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इसकी मुख्य वजह पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता माना जाता है। चूंकि इसमें खेती और पशुपालन के प्राकृतिक तरीकों पर जोर दिया जाता हैइसलिए इसे टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि प्रणाली समझा जाता है। लेकिन क्या भारत में जैविक कृषिव्यावहारिक हैयह जानने के लिए जरूरी है कि हम जैविक कृषि के नफे और नुकसान को अच्छी तरह समझ लें।

जैविक कृषि एक किस्म से वह पुरानी कृषि प्रणाली ही है जिसमें कृषि उपजों को बढ़ाने के लिए रसायनों खादों एवं कीटनाशकोंआनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) और अन्य कृत्रिम पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। कृषि उपजों और पशुधन में वृद्धि के लिए यह पूर्णतः प्राकृतिक तकनीकों और प्रक्रियाओं पर निर्भर होती है। इस कारण जैविक कृषि जहां मिट्टी की उर्वरकता,जैव विविधता और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखती हैवहीं इससे पैदा कृषि और पशु आधारित उत्पादन मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।

जैविक कृषि के प्रकार (Types of Organic Farming)

1. फसल आधारित जैविक कृषि: फसल आधारित जैविक कृषि मुख्य रूप से खाद्यान्नों के उत्पादन पर केंद्रित होती है। इसमें कृषि उपजों को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए फसल चक्र को अपनाया जाता है और जैविक कीट नाशक लाभकारी कीड़ों का सहारा लिया जाता है।

2. पशुधन आधारित जैविक कृषि: पशुधन आधारित जैविक कृषि में जानवरों जैविक चारा प्रदान किया जाता हैऔर उन्हें चरागाहों की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। साथ ही दूध या मांस बढ़ाने वाले हार्मोन की वृद्धि के लिए या उनके ईलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग नहीं कराया जाता है।

3. जैविक बागवानी: फलों और सब्जियों के उत्पादन पर आधारित जैविक बागवानी में फसल आधारित जैविक कृषि और पशुधन आधारित जैविक कृषि दोनों के तरीको को अपनाया जाता हैयह विधि मुख्य रूप से जैविक बागों और बगीचों पर केंद्रित होती है। जैविक बागवानी के उत्पादन फल आदि स्वास्थ्य के लिए उत्तम माने जाते हैं।

4. मिश्रित जैविक कृषि: परंपरागत मिश्रित खेती के समान ही मिश्रित जैविक कृषि में खाद्यान्नोंफल व सब्जियों और पशुपालन पर आधारित होती है। इसमें जैविक कृषि के फसल और पशुधन आधारितदोनों तरीकों को अपनाए जाते हैंइससे एक संतुलित और टिकाऊ प्रणाली का विकास होता है और फसल एवं पशुधन उत्पाद के सभी पोषक तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है।

5. शून्य बजट जैविक कृषि: शून्य बजट कृषि में पूर्णतः स्थानीय संसाधनों और स्वदेशी बीजों के पर के उपयोग जोर दिया जाता है और इसमें बाहरी अवयवों का न्यूनतम उपयोग किया जाता है।

6. पारंपरिक खेती: देश के कई हिस्सों में आज भी सदियों पुरानी कृषि प्रणाली जीवित है। इसे जैविक कृषि का मूलरूप माना जाता है। इसमें किसान कृषि उपजों को बढ़ाने और मिट!टी की उर्वरकता को बनाए रखने एवं बढ़ाने के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं और फसल चक्र को अपनाते हैं।


जैविक कृषि के लाभ
 (Advantages of Organic Farming)

पर्यावरण संरक्षण

- जैविक कृषि में रासायनिक खादों और दवाओं का उपयोग न होने से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और जल भंडार प्रदूषण से मुक्त होते हैं।

- जैविक खेती से विभिन्न प्रणाणियों और वनस्पितियों के संरक्षण मिलता हैइससे जैव विविधता सुरक्षित रहती है और और वन्यजीवों  आवास में वृद्धि होती है।

- इसमें स्वस्थ मृदा प्रबंधन के प्राकृतिक माध्यमों पर जोर दिया जाता हैजो कार्बन पृथकीकरण में सहायक होता है।

स्वास्थ्य सुविधाएं

- जैविक खाद्य पदार्थ सिंथेटिक कीटनाशकोंशाकनाशियों और जीएमओ से मुक्त होते हैंजो रासायनिक अवशेषों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करते हैं।

- मिट्टी की उच्च गुणवत्ता के कारण जैविक उपजों में पोषक तत्वों की अधिकता होती है।

- स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के साथ ही जैविक उपजों जैविक उपजों का बेहतर स्वाद होता हैक्योंकि उनमें रासायनिक तत्वों के अभाव होता है।

टिकाऊ विकास

- जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करती हैंइससे टिकाऊ विकास को बल मिलता है।

- जैविक फार्म आमतौर पर कम ऊर्जा ग्रहण क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैंइससे जीवाश्म आधारित ईंधन पर निर्भरता कम होती है।

स्थानीय अर्थव्यवस्था का विकास

- जैविक कृषि मुख्य रूप से छोटे स्तर पर होती हैउत्पादन कम होता है तो किसान अपनी उपज को विपणन स्थानीय स्तर पर करते हैं।

- बड़ी पूंजी आधारित कृषि के विपरीत जैविक कृषि में छोटे किसानों और व्यापारियों की निर्णायक भूमिका होती है। वे फलसब्जी और खाद्यानें के विक्रय के लिए सामूहिक रूप पर कार्य करते हैं।

जैविक खेती के नुकसान (Organic Farming Disadvantages)

कम पैदावार: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग न होने जैविक खेती से फसल की पैदावार कम होती है।

अधिक लागत: जैविक खेती के लिए अक्सर अधिक श्रम और महंगे जैविक इनपुट की आवश्यकता होती हैजिससे यह किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए अधिक महंगा हो जाता है।

कीट एवं रोग नियंत्रण की कठिनाई: जैविक तरीके कीट और रोग नियंत्रण के लिए कम प्रभावी होते हैंजिससे फसल को संभावित नुकसान हो सकता है।

प्रणाली बदलने की विलंब: एक पारंपरिक खेत को जैविक में बदलने में कई साल लग सकते हैं और यह आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।

स्पष्ट है कि जैविक कृषि के जहां लाभ हैं तो वहीं नुकसान भी कम नहीं हैं। लेकिन जिस तरह देश में जैविक उपजों का क्रेज बढ़ा है और जैविक उपजों की अच्छी कीमत उत्पादकों को मिलने लगी हैउसे देखते हुए यह निर्णय किसानों को ही लेना होगा कि वे परंपरगत कृषि को जारी रखे या फिर जैविक कृषि को अपनाएं।

जैविक कृषि से संबंधित जानकारी के लिए किसानों को अपेडा Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA) से बेहतर जानकारी मिल सकती है। अपेडा किसानों का जैविक कृषि के लिए प्रशिझा देने के अतिरिक्त उनके उत्पादों के विपणन में में सहायता करता है। जबकि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India) यानी FSSAI ‘जैविक खाद्य पदार्थों’ के उत्पादननिर्माणवितरणबिक्री या आयात को विनियमित करता है।

इसके अतिरिक्त नाबार्ड अर्थात नेशनल बैंक फोर एग्रीकल्चर एंड रूरल डवलपमेंट जैविक कृषि के लिए इच्छुक किसानों के लिए काफ मददगार हो सकता हैजो कि कृषि और ग्रामीण विकास से संबंधित परियोजनाओं के लिए वित्त पोष्ण के साथ-साथ उनका मार्गदर्शन भी करता है। भारत सरकार की योजनाओं को संचालित करता है और उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

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