निचले स्तर पर रोजगार के अवसरों का अभाव और दयनीय आर्थिकी ने ग्रामीण भारत में युवाओं के समक्ष जो चुनौतियां पेश की हैं, उसमें पलायन एकमात्र विकल्प रह जाता है। इधर शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसरों में गिरावट और जटिल होते जीवनयापन से उनमें हताशा का जन्म हुआ है। इस लिहाज से भारत सरकार का ‘मेरा युवा भारत’ (Mera Yuva Bharat) अभियान अंधेरे में एक चिंगारी की तरह है।
हालांकि चुनौतियां तो शहरी युवाओं के समक्ष भी
कम नहीं हैं, लेकिन शहरों में युवाओं के लिए कई युवा
प्रोग्रामिंग कार्यक्रम मौजूद हैं, जो उन्हें ज्ञान, कौशल
और अवसरों से लैस कराने में मददगार होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां
कि प्रतिस्पर्धी शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक युवाओं की सीमित पहुंच है, ऐसे
कार्यक्रम उन्हें गरीबी के चक्र से बाहर निकालने का माध्यम बनकर रह जाते हैं। कहा
जा सकता है कि ‘मेरा युवा भारत’ अभियान एक हद तक
इसी समस्या को लक्षित है।
ग्रामीण परिस्थितियों से मेल नहीं खाता यूथ प्रोग्रामिंग
असल में भारत में आज जितने भी युवा प्रोग्रामिंग
कार्यक्रम चन रहे हैं, वे पश्चिम के ‘यूथ
प्रोग्रामिंग’ कार्यक्रमों पर आधारित तो हैं ही, ग्रामीण
भारत की वास्तविकताओं की भी अनदेखी करते हैं। यही वजह है कि युवा प्रोग्रामिंग के
पवित्र उद्देश्यों के बावजूद ग्रामीण युवाओं में उनके प्रति एक विरोधाभासी प्रवृति
पैदा हुई है। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी प्रभावशीलता और समावेशिता पर
सवाल उठाती है।
इस विरोध की एक वजह यह भी है कि युवा प्रोग्रमिंग के केंद्रीय मुद्दों में शहरी पूर्वाग्रह साफ दिखाई देता है। इन कार्यक्रमों को अक्सर शहरी चुनौतियों, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी और बुनियादी संरचना के आधार पर निध्श्चित और कार्यान्वित किया जाता है। ये मानदंड ग्रामीण युवाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते। ग्रामीण युवाओं की असली चुनौतियां तो उनकी इंटरनेट तक सीमित पहुंच, भौगोलिक अलगाव और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पिछड़ापन हैं।
इसके अलावा, ग्रामीण भारत की
सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगालिक विविधता की अनदेखी भी इन युवा कार्यक्रमों में
स्पष्ट झलकती है। उनका ‘सभी के लिए एक आकार’ का दृष्टिकोण न
केवल ग्रामीण युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में विफल हुआ है बल्कि उनके प्रति
युवाओं में बहिष्कार का भाव जागृत हुआ है।
अपेक्षाकृत अधिक व्यावहारिक है मेरा युवा भारत
इस लिहाज ये भारत सरकार का ‘मेरा
युवा भारत’ (MY-Bharat) अभियान अधिक व्यावहारिक नजर आता है, जो
कि केंद्रीय खेल और युवा मामलों के मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है। इसमें 15 से
29 वर्श के युवाओं को एक मंच पर लाने का दावा किया गया। इसके लिए 31
अक्टूबर, 2023 को एक ऐप (https//mybharat.gov.in) जारी किया गया है। इस ऐप के जरिए इस
आयुवर्ग के युवा अपनी मुश्किलों और आकांक्षाओं को शासन से पहुंचा सकेंगे और शासन
द्वारा युवाओं के कल्याण के शुरू की गई कार्यक्रमों की जानकारी हासिल कर सकेंगे।
सरकार का दावा है कि यह कार्यक्रम प्रौद्योगिकी
को एक धारणा के बजाय एक सहायेगी के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। ग्रामीण
क्षेत्रों के डिजीटलीकरण की बाधाओं को ध्यान में रखकर यह कार्यक्रम तैयार किया गया
है। इससे समस्याओं के समाधान के नए तरीके अपनाने और समावेशी युवा कार्यक्रम बनाने
में सहायता मिलेगी। इसके तहत जहां राष्ट्रीय स्तर पर युवा डाटा तैयार किया जाएगा
वही मोबाइल-आधारित प्लेटफॉर्म, डिजिटल संसाधनों से सुसज्जित सामुदायिक
केंद्र,ग्रामीण युवा केंद्र, और ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा के यानी ‘सीखने
के’ केंद्र विकसित किए जा सकेंगे।
https://www.nalandaopenuniversity.com/my-bharat-portal-registration
भारत सरकार की यह पहल से ग्रामीण क्षेत्र के
युवाओं में आशा की किरण का अहसास जरूर कराती है। लेकिन सोचने की बात ये है कि भारत
सरकार सहित विभिन्न स्वैच्छिक संस्थानों के तमाम प्रयासों में जिस तरह के युवाओं
को तैयार करने की परिकल्पना की गई है, क्या वे वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों
के टिकाऊ विकास के लिए मददगार साबित होंगे।
ग्रामीण क्षेत्र के कई युवा निजी कारणों या फिर
शहरी जीवन की जटिलता के कारण अपने गांवों में ही छोटा-मोटा काम करके लीवन यापन
करना चाहते हैं। जबकि ये कार्यक्रम युवाओं को अपने परिवेश में रहने से अधिक बाहरी
अच्छे वेतन और जीवन यापन की अच्छी सुविधाएं प्राप्त कर दुनिया में अपनी जगह बनाने
के लिए प्रेरित करते हैं।
भारत सरकार अक्सर देश की अर्थव्यवस्था 5
ट्रिलियन डॉलर की ओर अग्रसर होने की बात करती है। देश के भौगोलिक विस्तार और
संसाधनों की उपलब्धता की दृष्टि से यह लक्ष्य मुश्किल भी नहीं है। लेकिन, उस
अर्थव्यवस्था में ग्रामीण भारत का योगदान और उसकी हिस्सेदारी क्या होगी और क्या
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ किए बिना,
उस
विकास से दो-तिहाई भारत का कितना भला होगा, ये प्रश्न
विचारणीय है।
ग्रामीण युवाओं की उपेक्षा देशहित में नहीं है
निश्चित ही वर्तमान, वैश्विक पूंजी
की अर्थव्यवस्था के युग में स्थानीय हितों की सुरक्षा बेहद चुनौती पूर्ण है। भारत
में तो जिस तरह हाल के वर्षों में ‘ग्लोबल इंवेस्टर्स सम्मिट’ के
जरिए बाहरी पूंजी का स्वागत किया जाता रहा है यह और भी जटिल है। देश के सभी
राज्यों की सरकारें चाहती हैं कि उनके राज्य में अधिक से अधिक बाहरी पूंजी का
निवेश हो।
मजे की बात तो यह है कि इस तरह के ग्लोबल
इंवेस्टर्स सम्मिट के पीछे तर्क भी दिया जाता है कि बिना बाहरी निवेश से विकास को
गति नहीं मिल सकती। लेकिन एक पूंजीपति कहीं भी निवेश इसलिए करता है कि वहां के
संसाधनों से मुनाफा कमा सके, स्थानीय स्तर पर रोजगार देना और
स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना उसका ध्येय नहीं होता। जाहिर है कि इस तरह के
आर्थिक सोच के चलते न तो ग्रामीण युवाओं का भला हो सकता है और न ही ग्रामीण
अर्थव्यवस्था (Rrural Economy) का।
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