अंतरिम बजट (Interim Budget) में मनरेगा के लिए आबंटित धनराशि में 43 प्रतिशत की वृद्धि, आंकड़ों की बाजीगरी में नहीं उलझना चाहते ग्रामीण

उम्मीदों के अनुकूल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट (Interim Budget) में मनरेगा (MGNREGA) के लिए करीब 43 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की है। वर्ष 2023-24 में यह धनराशि 60,000 करोड़ रुपए थी जो इस वर्ष 86,000 करोड़ रुपए कर दी गई है। कहा जा रहा है कि इसके जरिए वित्त मंत्री ने बेकारी और महंगाई से जूझ रहे ग्रामीण समुदाय, खासकर मनरेगा श्रमिकों को बढ़ी राहत दी है।

निसंदेह केंद्रीय बजट 2024-25 (Union Budget2024-25) के प्रस्तावों में मनरेगा के लिए आबंटित धनराशि में सबसे अधिक है। लिहाजा इसकी सराहना होना स्वाभाविक है। लेकिन जिस तरह सितंबर-अक्टूबर से ही ग्रामीण विकास मंत्रालय वित्त मंत्री से अनुपूरक अनुदान की मांग कर रहा था उस लिहाज से, क्या वास्तव में वित्त मंत्री ने मनरेगा और ग्रामीण समुदाय के साथ न्याय किया है। इसे जानने के लिए जरूरी है कि हम एक नजर बजट के आंकड़ों पर डालें।

ग्रामीणों की समझ से परे हैं वित्त मंत्री की बातें

वित्त मंत्री द्वारा बजट भाषण में की गई घोषणा के मद्देनजर यह और भी जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार विकास के ऐसे दृष्टिकोण के साथ काम कर रही है जो सर्वांगीण, सर्वस्पर्शी और सर्वसमावेशी हो, इसमें सभी स्तरों पर सभी जातियों को लिया गया है। हम 2047 तक विकसित भारतबनाने के लिए काम कर रहे है।अर्थात All-around all-pervasive and all-inclusive development.

वित्त मंत्री का यह वक्तव्य उम्मीदों भरा है, यह अलग बात है कि जिस ग्रामीण समुदाय और उसमें भी सबसे कमजोर वर्ग की बात हम कर रहे हैं, वह इससे कितना सहमत होगा! संदेह तो इसमें भी है कि वह वित्तमंत्री द्वारा दिखाए गए विकसित भारतके सपने को समझाता भी है या नहीं! दूसरे शब्दों में कहें तो वित्त मंत्री उन लोगों को 20-22 साल बाद के हसीन सपने दिखा रही हैं, जिनके समक्ष दो-जून की रोटी का इंतजाम करना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हीं के लिए तो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana) को पांच साल तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

गरीब कल्याण अन्न योजना के दौर में हसीन सपनें

कोविड संकट के दौरान शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के गरीब परिवारों के प्रत्येक सदस्य को हर महीना 5 किलो राशन दिया जाता है। आरंभ में 6 महीनों के शुरू की गई इस योजना को कई बार बढ़ाने के बाद नवंबर 2023 में केंद्रीय कैबनेट ने इसकी अवधि बढ़ाकर पांच साल कर दी गई है। इस योजना के लाभार्थियों की संख्या  81 करोड़ 85 लाख है। इसमें भी सर्वाधिक भूमिहीन खेत मजदूर, सीमांत किसान और ग्रामीण शिल्पकार जातियों के लोग हैं।

देश का यह गरीब तबका यह तो समझ ही सकता है कि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में दो दशक बाद के सपने दिखाने के साथ-साथ केंद्र सरकार की बीते 10 सालों की उपलब्धियों का बार-बार उल्लेख किया है, उसका मतलव क्या है? यह तो हर कोई जानने लगा है कि सालना बजट में आमतैर पर बीते साल आबंटित धन के उपयोग और आने वाले साल में विभिन्न कार्यों के लिए धन के आबंटन का लेखा-जोखा होता है।

मनरेगा बजट में वृद्धि की व्यावहारिक सच्चाई

मनरेगा के लिए 2023-24 के अनुमानित बजट में 60,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे, संशोधित बजट में यह धनराशि बढ़कर 86,000 करोड़ रुपए कर दी गई। वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में भी इतनी ही धनराशि आबंटिन की गई है, फिर वृद्धि कहां हुई? यदि इसे बजट के आकार में हुई वृद्धि को देखें तो यह धनराशि पिछले साल की तुलना में और भी कम हो जाती है। वर्ष 2023-24 का संशोधित बजट 48,16,678.62 करोड़ था जो कि इस साल 51,08,780.19 करोड़ हो गया। ध्यान देने की बात तो यह भी है कि वर्ष 2022-23 में मनरेगा बजट (वास्तविक) 90805.93 करोड़ रुपए था।

चूंकि मनरेगा का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास विभाग द्वारा किया जाता है, वही इसका उपयोग करता है। अर्थात ग्रामीण विकास को आंबटित होने वाली धनराशि में मनरेगा का अंश मुख्य है। वर्ष 2022-23 में ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट (वास्तविक) 1,76,837.39 करोड़ और 2023-24 का (अनुमानित) 1,57,545.00 (संशोधित) 171069.46 करोड़ था 2024-25 में यह (अनुमानित) 1,77,566.19 करोड़ कर दिया गया है।

राज्य सरकारों के माध्यम से किया जाता है बजट का उपयोग

यहां यह जानना भी जरूरी है कि इस धन का उपयोग ग्रामीण विकास विभाग किन मदों में करता है। ग्रामीण विकास विभाग को आबंटित धन के उपयोग के लिए चार मद निश्चित किए गए है- 1) केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएं, 2) केंद्र प्रायोजित योजनाएं, मनरेगा इसी के अंतर्गत आता हैं। 3) केंद्र का स्थाापना व्यय और 4) केंद्रीय क्षेत्र की अन्य योजनाए। चूंकि ग्रामीण विकास राज्य सूची का विषय है, इसलिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्यों के माध्यम से इस उपयोग करता है, इसमें राज्य सरकार का भी अंश शामिल होता है। विभिन्न राज्यों में मनरेगा पारिश्रमिक में अंतर की वजह भी यही है।

इस साल यानी 2024-25 के बजट में उक्त मदों के लिए आबंटित धनराशि इस प्रकार है - केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएं 153.00 करोड़, कंेंद्र प्रायोजित योजनाएं 1,77,499.14 करोड़, केंद्र का स्थाापना व्यय 105.68 करोड़ और केंद्रीय क्षेत्र की अन्य योजनाए 108.37 करोड़ रुपए।

इसमें पंचायती राज संस्थाओं (Panchayati Raj Institution) - ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों या क्षेत्र समितियों और जिला पंचायतों द्वारा किए जाने वाले कार्य और उनका व्यय शामिल नहीं हैं। पंचायती राज संस्थाओं (PRI) का बजट अलग होता है। केंद्रीय वित्त आयोग और राज्य वित्त आयोग से प्राप्त और निजी संसाधनों से अर्जित धन उनकी आय के स्रोत होते हैं। ठीक उसी तरह जैसे केंद्र और राज्य सरकारों की आय के स्रोत होते हैं, वे भी केंद्र और राज्य सरकारों के समान ही अपना बजट बनाती हैं।

आंकड़ों की बाजीगरी में उलझना नहीं चाहते ग्रामीण

आंकड़ों की यह बाजीगरी ग्रामीणों की समझ में नहीं आती और न ही वे इसमें उलझना चाहते हैं। उनके लिए तो जमीनी हकीकत, ‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या’’ वाली कहावत है। वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि मनरेगा जो पिछले कई वर्षों से उनकी आजीविका का मुख्य जरिया है, उसे लगातर कमजोर किया जा रहा है। उसे कभी जॉबकार्ड को आधार से जोड़ने के नाम पर तो कभी कार्यस्थन पर ऑनलाइन हाजिरी के नाम पर और कभी बजट में कटौती कर धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है।

यह सच है कि मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में सम्मानजनक रोजगार और अर्थव्यवस्था के विकास का स्थाई समाधान नहीं हो सकता।  देश के कई अर्थशास्त्री इसे एक वैकल्पिक व्यवस्था मानते हैं। लेकिन यह भी सच है कि हाल के वर्षों में मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक-सामाजिक बदलाव ;ज्तंदेवितउंजपवदद्ध का माध्यम साबित हुआ है। इसके तहत कराए जाने वाले सामूहिक कार्यों से जहां ग्रामीण संरचना सुदृढ़ हुई है और भौतिक संसाधनों का संवर्धन हुआ है तो वहीं व्यक्तिगत कायों से कृषि और पशुपालन में उल्लेखनीय प्रगित हुई है।

आंकड़ों की बाजीगरी में नहीं उलझना चाहते ग्रामीण

पूर्व में मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार का मामला ग्राम पंचायत से संसद तक चर्चा का विषय रहा है। ऐसा नहीं कि आज भ्रष्टाचार खत्म हो चुका है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण ग्राम पंचायत सचिव, ग्राम रोजगार सहायक और पंचायत सहायकों के खिलाफ बराबर कार्रवाई होती रहती है। (संभव है देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा होता हो।) जबकि इसकी वजह कर्मचारी नहीं बल्कि मांग आधारित इस योजना को लक्ष्य आधारित कर दिया जाना है।

विकास विभाग के अधिकारी, जो सीधे मनरेगा जुड़े हैं, अक्सर यह शिकायत करते रहते हैं। इसके साथ ही वे यह भी मानते हैं कि मनरेगा सहित विभिन्न विकास और कल्याणकारी योजनाअें में वृद्धि के साथ ही एकीकृत पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बात ग्रामीण क्षेत्रों में धन का प्रवाह तो बढ़ा है लेकिन उस हिसाब से प्रशासन में सुधार नहीं हुआ है। लिहाजा मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना के लिए न्यायसंगत बजट आबंटन के साथ-साथ इन विकल्पों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।




 

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