भाजपा पर भारी संघ परमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत इन दिनों मीडिया में छाए हुए हैं। संघ के 8 दशक से लंबे इतिहास में संभवतः वह पहले संघ प्रमुख है जिन्हें मीडिया में इतना प्रचार मिला है। कारण साफ है। उनके नेतृत्व में संघ ने पहली बार अपने राजनैतिक मोचेर भाजपा (पहले भारतीय जन संघ) के आंतरिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप किया है। यहां तक कि 1952 में गुरुजी की पहल पर जब कांगरेस से निकले श्यामा प्रसाद मुखजीर के नेतृत्व में भारतीय जन संघ का गठन हुआ और 1985 में ततकालीन सर संघचालक बालासाहब देवरस द्वारा ‘बाबरी मस्त्रिजद्राम जन्मभूमि’ विवाद को मुख्य मुद्दा बनाने का सुझाव दिया तब भी संघ ने भाजपा के आंतरिक मामलों में इतना हस्तक्षेप नहीं किया था। इसकी वजह यही हो सकती है कि शायद माऩ मोहन भागवत जी को लगता है कि 1985 के बाद भाजपा का जो विस्तार हुआ उसके पीछे संघ की निर्णायक भूमिका थी और जब वह सत्ता पर काबिज हुई तो उसने संघ के एजेंडे को द्रकिनार कर दिया। यह पूरी तरह सही नहीं तो गलत भी नहीं है। लेकिन उन्होंने भाजपा नेताओं के इस तर्क सहज ही स्वीकार कर लिया कि उसे पूर्ण बहुमत न मिल पाने और सहयोगी दलों का उस पर दबाव होने के कारण वह संघ के एजेंडे को लागू नहीं कर पाई। लिहाजा उन्होंने लोकसभा चुनाव में संघ के स्वयंसेवकों को भाजपा के चुनाव प्रचार में लगा दिया पर भाजपा चुनाव हार गई। अंदरूनी जाचपड़ताल से जल्द ही यह भी साफ हो गया कि भाजपा की चुनावी हार संगठन की आंतरिक गुटबाजी के कारण हुई तो उन्होंने उसे नेतृत्व बदलने का निर्देश दे दिया। लेकिन चुनावी हार के तुरंत बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का दावा करने वाले लालकृष्ण आडवाणी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का मोह नहीं त्याग सके। संघ ने उन्हें तीन महीने का समय देकर कह दिया कि इस बीच वे स्वयं ही पद त्याग दें। जबकि श्री आडवाणी ने कह दिया कि वे नेता प्रतिपक्ष के पद पर अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। फिर क्या था जैसे ही संघ द्वारा उन्हें दी गई समयावधि समाप्त हुई उन्होंने प्रमुख भाजपा नेताओं को अपने कायार्लय में बुलाकर उनकी क्लास लेनी शुरूकर दी। कभी इस ख्त्रोमे के नेताओं को बुलाया जा रहा है तो कभी उस ख्त्रोमे के, कभी नेता श्री भागवत से अकेले मिल रहे हैं तो कभी समूह में। अबकी बार उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से आडवाणी को हटाने के अलावा पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी हटाने का मन बना लिया। इसी बीच ‘जिन्ना प्रकरण’ की गहमागहमी में भाजपा के शिमला के चिंतन बैठक भी संपन्न हो गई। उसमें भी घोषित एजेंडे के मुताबिक न तो चुनावी हार के कारणों पर ठीक से चचार हो पाई और न ही भविष्य की रणनीति ही बन पाई। नेतृत्व परिवर्तन के सवाल पर भी पार्टी कोई नजरिया नहीं बना पाई। हपले से ही नाखुश माऩ मोहन भागवत जी को भाजपा नेताओं की यह बात अच्छी नहीं लगी, लिहाजा उन्होंने रूठने के अंदाज में कह दिया कि यह भाजपा का अंदरूनी मामला है जो कुछ करना है वह भाजपा को करना है। इसका पूरे देश में यह संदेश गया कि यह भाजपा नेता संघ की बात नहीं मानते तो आगे संघ भाजपा का सहयोग नहीं करेगा। ऐसा ही 1984 के चुनाव में भी हुआ था जबकि भजपा ने संघ की इच्छा के विरुद्ध ‘गांधीवादी समाजवाद’ का नारा दिया था और उसे लोकसभा में मात्र दो सीटें ही मिल पाई थीं। द्रअसल संघ प्रमुख चाहते भी यही थे। कहा जा रहा है कि सर संघचालक के रूप में मोहन भागवत जी संघ संस्थापक डॉ़ के़स़ हेडगेवार के सपने हिन्दुराष्ट्र की स्थापना को पूरा करना चाहते हैं। इसलिए वे अपने राजनैतिक मोचेर भाजपा को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं ताकि वे संघ के उन क्रियाकलापों को मूर्त रूप दे सकें जो उसने 1925 से लेकर अब तक समयसमय पर शुरू किए लेकिन राजनीति पर पकड़ न होने के कारण पूरे नहीं हो सके। यही वजह है कि इन दिनों भाजपा के अंद्र जो गुटबाजी चल रही है उसके बारे में कहा जा रहा है कि मोहन भागवत सब कुछ ठीक कर लेंगे। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि भाजपा नेतृत्व के सवाल पर संघ के अंद्र भी कम गुटबाजी नहीं है। संघ के सरकार्यवाहक मदनदास देवी और वरिष्ठ पदाधिकारी सुरेश सोनी की खिचड़ी अलग पक रही है, वे श्री भागवत के नजरिए से असहमत बताए जाते हैं। तब सवाल यह उठता है कि भाजपा के घर को तो संघ प्रमुख संभाल लेंगे लेकिन इसे संघ के घर का जो नुकसान होगा उसे कौन संभालेगा? देखने की बात तो यह भी है कि सर संघचालक मोहन भागवत भाजपा को अपने निर्देशों पर चलने के लिए क्या उसे सिर्फ एक हिन्दुवादी राजनैतिक पार्टी बनाए रखना चाहते है फिर उसके अन्य प्रकोष्ठों भारतीय मजदूर संघ, बनवासी कल्याण आश्रम, स्वदेशी जागरण मंच आदि के प्रत्रोगराम लागू करवाने में भी दिलचस्पी दिखाते है?

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3 टिप्पणियाँ

  1. स्वागत है आपका, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें. कृपया लेख के बीच में पैरा दे तो पठनीयता बनेगी
    धन्यवाद!

    - सुलभ जायसवाल सतरंगी (यादों का इंद्रजाल)

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  2. आपका स्वागत है
    ढेर सारी शुभकामनायें.



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