पंचायत सशक्तिकरण के बिना आत्मनिर्भरता संभव नहीं



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंचायती राज दिवस 24 अप्रैल को विडियो कांफ्रेसिंग के जरिए पंचायत प्रतिनिधियों से सीधा संवाद किया. 1993 में इसी दिन से पूरे देश में वर्तमान पंचायत व्यवस्था आरंभ हुई थी और 2010 में केंद्र सरकार ने इस दिन को पंचायती राज दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि पंचायती राज दिवस के बहाने देशवासी पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े सपने और पंचायतों की स्वायत्तता के संवैधानिक प्रावधानों का स्मरण करें.
प्रधानमंत्री ने देशभर के पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना वाइरस से पैदा संकट से हमें यह आत्मनिर्भरता का सबक मिला है. पंचायतें मजबूत होंगी तो गांव आत्मनिर्भर होंगे.
यह बात गांधी जी 1921 के बाद बार-बार कहते रहे. आजाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू करने के लिए गठित बलवंत राय मेहता समिति से लेकर अशोक मेहता समिति, पी के थुंगन समिति. एम एल सिंघवी समिति आदि ने भी यही कहा. 1993 में बनाए गए संविधान संशोधन अधिनियम का भी ध्येय यही रहा है. लेकिन सोचने की बात यह है कि तमाम सिफारिशों और प्रावधानों के बावजूद पंचायतें कितनी मजबूत हुई हैं और गांव कितने आत्म निर्भर!
पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से थ्री-एफ की थ्योरी लागू करने की योजना बनाई ताकि पंतायतों को आवश्यक फंड, फंक्शन और फंक्शनरी उपलब्ध कराए जा सकें. देश के कुछ राज्यों को छोड़कर थ्री-एफ थ्योरी के नाम पर पंचायतों की केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भरता ही बढी है.
प्रधानमंत्री ने जिन 5-6 ऱाज्यों में पंचायतों द्वारा सराहनीय काम किए जाने की बात कही है यदि उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों से अनुदान न मिले तो वे ग्राम पंचायत सचिवालय के काम तक नहीं कर सकती. यही नहीं इन राज्यों में एक ही ग्राम पंचायत सचिव के पास 4 से लेकर 15-16 पंचायतों के काम दायित्व है, (मध्य प्रदेश को छोडकर).जहां तक कार्य यानी फंक्शन की बात है पंचायतों को पंचायती राज के बजाय अन्य विभागों के काम दिए जा रहे है. उन कामों की योजनाएं भी विभाग बनाते है और नियंत्रण भी विभाग का होता है. ऐसी स्थिति में पंचायतें मजबूत नहीं हो सकती हैं. पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें पूर्ण सांगठनिक और आर्थिक स्वायत्तता प्रदान करनी होगी. इसी से गांव आत्म निर्भर होंगे.
इस मौके पर प्रधानमंत्री ने ई-ग्राम स्वाराज और संपत्ति योजना नाम से दो नए एप शुरू करने की घोषणा की है. ई-ग्राम स्वराज से पंचायत प्रतिनिधि और गांव के लोग एक ही साइट पर पंचायत से जुडी जामकारी प्राप्त कर सकैंगे वहीं संपत्ति योजना से गांव की संपत्ति की डिजीटल मैपिंग हो सकेगी. हालांकि दोनों सुविधाएं पहले से मौजूद हैं. लेकिन क्या इससे गांवों के दबंग लोगों द्वारा कब्जे में की गई सार्वजनिक संपत्ति मुक्त हो सकेगी. क्या चुनी गई पंचायतें उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करने का साहस कर सकेंगी.
प्रधानमंत्री ने गांवों की आत्म निर्भरता की बात तो कही है लेकिन क्या वे ऐसी व्यवस्था भी सुनिश्चित करेंगे जिससे पंचायत क्षेत्र में भौतिक संपदा के उपयोग के निर्णय का अधिकार पंचायतों को मिल सकैं.

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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत महत्वपूर्ण विषय। पंचायती राज व्यवस्था की यदि बात की जाय तो आज की स्थिति इसकी मुख्य परिकल्पना से कहीं दूर जाकर पथभ्रष्ट हो गये पथिक सी हो गई है। जहाँ तक स्वायत्तता व आत्मनिर्भरता की बात की जाय तो आज की पंचायती राज संस्थाएँ दिशाविहीन सरकारी कर्मचारियों की कमीशनखोरी के मात्र एक और माध्यम से अलग कुछ नहीं। जिन विजनरी नीतिकारों ने कभी इस व्यवस्था की अवधारणा शुरू की उन्होंने कभी सोचा भी N होगा कि भविष्य में सरकारी सेवारत एक एक पंचायत मंत्री, कई कई ग्राम पंचायतों का मुखिया होगा और पंचायतों के चुने हुए मुखिया उसकी प्रजा।

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    1. आप एक ही नजरिए से देख रहे हैं। पंचायतों में भ्रष्टाचार है, इसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन पंचायतों में जन सामान्य की सीधी पहुंच होती है। जनता की जागरूकता उस पर अंकुश लगा सकती है। यदि पंचायतों में जन सामान्य की भागीदारी बढ़ती है तो वे एक सीमा से अधिक सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकते। पंचायतों में चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि हमेशा अपने मतदाताओं और अपने विरोधियों के बीच होता है। बंगाल और केरल जैसे राज्यों में यदि पंचायती राज सफल है तो उसका बड़ा कारण पंचायतों में जनता की भागीदारी और शिक्षा का उच्च स्तर है। आप देखेंगे इन राज्यों में राजनैतिक दलों के नेता भी अपेक्षाकृत कम भ्रष्ट हैं।

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